power mongerer pained by bhumantra

-भूमंत्र डेस्क

भूमंत्र से बहुतों को दर्द हुआ है। ऐसा आभास तब हुआ जब सत्ता सुख भोगने में तल्लीन दो महानुभावों ने भूमंत्र पर निशाना साधा

इनका दर्द क्या है?

इनका वास्तविक दर्द यह है कि हर ओर छोर के भूमिहारों के बीच सामूहिक संवाद क्यों स्थापित हो गया। हर छोर पर स्थित भूमिहारों के बीच सामूहिक तौर पर संवाद स्थापित होने से कई स्वार्थी तत्वों की दुकान बंद होती है। समाज के बीच व्याप्त संवादहीनता सत्तालोलुप मवाद को जन्म देता है। ये मठाधीश संवीदहीनता की स्थिति में एक प्रकार से समझा बुझा कर वोट तो अपनी मर्ज़ी से डलवा देते हैं, लेकिन जब एक आम पृष्ठभूमि का मतदाता किसी मदद के लिए मठाधीशों के आगे गुहार लगाता है तो उसको चलता कर दिया जाता है। वह बेचारा मतदाता, और यहाँ तक कार्यकर्ता भी तब वेदना से क़राह उठता है, जब उसे पता चलता है कि जिसके विरूद्ध उसको लड़ाया गया, मलाई भी उसी को परोसा गया। लड़ कर ठगे तो गए दोनों तरफ़ के आम मतदाता और कार्यकर्ता।

विश्वास न हो तो सरकार द्वारा की गई राजनैतिक नियुक्तियों को उठा कर देख लीजिए। भाजपा की सरकार ने अधिकतर ग़ैर भाजपाइयों को ही नियुक्त किया है हर जगह। कैसे हुआ, वो करने वाले जानें।

ये मठाधीश अपनी विचारधारा पर खुद ही अडिग नहीं हैं तो भूमिहार को उलाहना देने का कौन सा नैतिक अधिकार रखते हैं। पहले इनके अपने वचन और कर्म में समानता आना चाहिए। विचारधारा के प्रति पहले खुद निष्ठावान बनें। कार्यकर्ता के प्रति पहले खुद वफादार बनें।

भूमंत्र को सलाह उसके बाद अवश्य दें, स्वागत रहेगा।