Dhruv Tyagi

ध्रुव त्यागी की हत्या देखकर लगता है जैसे हत्या इस्लाम में बहुत पवित्र कर्म समझा जाता हो। एक आदमी अपनी बेटी की इज्जत से खिलवाड़ की शिकायत लेकर पड़ोस के शम्से आलम के पास जाता है। शम्से आलम शिकायत सुनने की बजाय अपने घरवालों को बुला लाता है जिसमें उसकी मां, उसका बाप, उसकी बहने और सगे संबंधी सब शामिल होते हैं।

और सब मिलकर ध्रुव त्यागी पर टूट पड़ते हैं। शम्से आलम अपनी मां से कहता है घर से सामान लेकर आओ और उसकी मां दौड़कर घर से जानवर काटने वाला हथियार उठा लाती है। फिर उसी हथियार से ध्रुव त्यागी को टुकड़े टुकड़े कर दिया जाता है। ध्रुव का बेटा बीच बचाव करने के लिए आता है तो उसको भी चाकू से छलनी कर दिया जाता है। ग्यारह लोग जिसमें कि सब एक ही परिवार के थे सबने मिलकर ध्रुव की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि वो अपनी बेटी से छेड़खानी की शिकायत करने की गलती कर बैठे थे।

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अगर कुछ लिंचिंग होती है तो वो यही है। सामूहिक रूप से किसी एक निहत्थे व्यक्ति की निर्मम हत्या। पहले चाकुओं से वार किया फिर पत्थर से सिर कुचल दिया। और इस निर्मम हत्याकांड में महिलाएं बीच बचाव करने की बजाय सहयोगी की भूमिका निभाती रहीं।

जो लोग मुस्लिम मोहल्लों में या उसके आसपास भी रहे होंगे उनके लिए यह सब बहुत आश्चर्यजनक नहीं लग रहा होगा। कई बार मैंने खुद मुसलमानों को झुंड बनकर दूसरे पर टूटते देखा है वह भी तब जब गलती उनकी खुद की ही होती है। लेकिन सच्चे मुसलमान की ट्रेनिंग का हिस्सा होता है, अपनी गलती कभी मत मानों क्योंकि इन गलीच हिन्दुओं के साथ तुम जो कर रहे हो उससे तुम्हारा शबाब बढ़ रहा है। ऐसे में काफिर, मुशरिक गलीच हिन्दुओं के खिलाफ एक होना ही तुम्हारे मुसलमान होने की पहली और आखिरी निशानी है।

आज इंडिया गेट पर ध्रुव त्यागी की हत्या के विरोध में जमा हुए लोगों में वह लड़की भी शामिल थी जिसके साथ शम्से आलम ने छेड़खानी किया था। उसके चेहरे पर कोई रंग नहीं था। आज उसे अपने लड़की होने पर शर्म आ रही होगी कि काश वह लड़की न होती तो शायद उसके बाप की जान न जाती।

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एक लड़की को उसके अस्तित्व पर शर्मसार होने पर मजबूर करनेवाले लोगों ने रमजान के “पवित्र” महीने में उसे जीवनभर के लिए इस्लाम की सच्ची सीख दे दिया है। बाकी टीवी और पोर्टल के सेकुलर लुच्चे चाहे जितना चीखें चिल्लायें, अब वह किसी पर भरोसा नहीं कर पायेगी। दुर्भाग्य से इस देश में मुसलमानों को लेकर समझ इन लुच्चे सेकुलरों के पाखंड से नहीं बल्कि ऐसी ही घटनाओं और व्यवहारों से विकसित हुई है। अगर भारत में मुसलमानों से नफरत है तो उस नफरत की बुनियाद में ऐसी असंख्य घटनाएं हैं जो कहीं रिकार्ड पर नहीं हैं लेकिन समाज उनसे सबक लेकर व्यवहार करता है। जैसे, दिल्ली के इस गांव ने निर्णय ले लिया है कि अब गांव में किसी मुसलमान को कमरा किराये पर नहीं दिया जाएगा।

अब लुच्चे सेकुलर जितना चाहें उतना छाती पीटे। चाहें तो जाकर पहलू खान के पहलू में दफन हो जाएं, उनके किसी कुतर्क का समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी के फेसबुक वॉल से साभार)