– देवकुमार पुखराज, हैदराबाद
पहली बार देख रहा हूं कि स्वामी सहजानंद सरस्वती(Swami Sahajanand Saraswati) की जयंती पर इस बार 22 फरवरी को कई कार्यक्रम हुए। अखबारों में लेख छपे और डिजिटल माध्यमों पर भी संवाद और संभाषण हुए। इससे पहले महाशिवरात्रि के दिन ऐसे कार्यक्रम और जलसे होते थे। इस साल भी जरुर होंगे। विचारणीय सवाल यह है कि क्या स्वामीजी की जयंती 22 फरवरी को माना जाए या महाशिवरात्रि को। इस बारे में मेरा विचार वही है जो दशकों से समाज का रहा है, यानि स्वामीजी की जयंती महाशिवरात्रि ही मान्य होनी चाहिए। अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख 22 फरवरी नहीं।
भारत ऋषि-कृषि प्रधान देश रहा है। एक आध को छोड़ दें तो हमारे सारे पर्व त्यौहार और धार्मिक कार्य भारतीय कालगणना के मुताबिक संपादित होते हैं। पंचांगों से निर्धारित होते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख केवल सरकारी और ऑफिशियल कार्य व्यवहार में ही चलन में है। हमारे देश के संत-महात्माओं, ईश्वरीय अवतारों के प्राकट्य तिथि (जन्म जयंती) और देवलोकगमन की तिथियां भी भारतीय संवत्वर के हिसाब से लोकमानस में रची-बसी हैं। जैसे चैत्र नवमी के दिन रामजी का जन्मोत्सव और भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन श्री कृष्ण जन्मोत्सव। हाल ही में माघ मास की सप्तमी तिथि को स्वामी रामानंद जी की जन्म जयंती भी मनायी गयी।
यदि हम स्वामी सहजानंद सरस्वती(Swami Sahajanand Saraswati) को भी महापुरुष मानते हैं। उनको अपना आराध्य समझते हैं। देवतुल्य दर्जा देते हैं। किसानों का भगवान कहते हैं, तो फिर उनकी जन्म जयंती को अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख से क्यों मनाएं। हम क्यों नहीं महाशिवरात्रि को ही स्वामीजी की अवतरण तिथि निश्चित कर दें। उस दिन को ही स्वामीजी से जुड़े सारे धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जलसे करें। पहले से भी ऐसा ही होते आया है। बीच के दिनों में देखा जा रहा है कि कुछ लोग अपनी सुविधा के अनुसार और अधिकांश लोग नासमझी के चलते 22 फरवरी को स्वामीजी की जयंती बताने, मनाने लगे हैं। एक महापुरुष की जन्म जयंती पर इस तरह का भ्रम कदापि उचित नहीं है। यह वैचारिक फिसलन का द्योतक है। एक सक्षम, समर्थ और संस्कारी समाज के लिए यह शोभादायक नहीं है।
मानना चाहिए कि महाशिवरात्रि सनातन धर्म में बेहद महत्वपूर्ण तिथि है। उस दिन अनेक लोगों की धार्मिक व्यस्तताएं भी रहती हैं। फिर भी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती मनाने के लिए समय निकालना चाहिए। हमें महाशिवरात्रि को इसलिए भी स्वामीजी को याद करना चाहिए कि वे शैव थे। दशनामी पंथ में दीक्षित संन्यासी थे और शायद इसीलिए भगवान शिव ने अपने अवतरण तिथि को ही अपने अवतार के तौर पर स्वामीजी को धरा धाम पर भेजा होगा। ऐसे में समाज के प्रबुद्ध लोगों, सामाजिक संस्थाओं और स्वामीजी से जुड़े मठ-मंदिरों की परंपरा से सम्बद्ध सुधीजनों को एकमुश्त राय बनाकर कहना चाहिए कि स्वामी सहजानंद सरस्वती(Swami Sahajanand Saraswati) की जयंती महाशिवरात्रि ही है। उसी दिन या एक दिन आगे-पीछे जयंती का कार्यक्रम आयोजित हों।
मान लिया कि 1889 में जिस दिन स्वामीजी का जन्म हुआ उस दिन 22 फरवरी की तारीख रही हो, लेकिन संन्यासी के लिए वो तिथि महत्वपूर्ण है, कैलेंडर की तारीख नहीं। और उस दिन महाशिवरात्रि ही थी। यह दिन ही स्वामीजी के जन्म जयंती के लिए शुभ है, सुंदर है और सर्वस्वीकार्य भी होना चाहिए।
When to celebrate the birth anniversary of Swami Sahajanand Saraswati?
इसीलिए आइए इस वर्ष भी महाशिवरात्रि के दिन ( 11 मार्च, 2021, दिन गुरुवार) को अपने युगपुरुष की जयंती को धूमधाम से मनाएं। जो जहां है, वहीं स्वामीजी को याद करें। सामूहिक तौर पर आयोजन हो तो सुंदर। बड़ा समारोह हो सके तो अतिसुंदर। यदि समय और सामर्थ्य का अभाव है तो घर में ही स्वामीजी की तस्वीर के सामने एक दीप जलाकर और दो पुष्प चढ़ाकर अपनी श्रद्धा निवेदित करें। यह हमारे लिए, आने वाली पीढियों के लिए और ब्रह्मर्षि वंश के लिए बहुत जरुरी है। स्वामी सहजानंद सरस्वती अमर रहें।