-डा उदय कुमार(पशु-चिकित्सक एवं समाजसेवी, हाजीपुर)
एक सामान्य आकलन के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि लगभग 2-5% भूमिहार परिवार भूमिहीन हो चुके हैं. लगभग 10-15% भूमिहार परिवारों के पास सिर्फ घर और नाममात्र की जमीन बची हुई है. अगर जमीन बिक्री का यही रफ्तार रहा तो आने वाले 10 वर्षो में लगभग 10% भूमिहार परिवार भूमिहीन हो जाएंगे.
सोचिये की अगर हमारे पूर्वज कठिनाई में भी जीवन व्यतीत कर हमारे लिए जमीन नही बचा कर रखते तो आज कहा से जमीन बिक्री कर पाते! और यह भी सोचिये की आप आने वाले पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे जब उनको कभी किसी विपत्ति का सामना करना पड़ा तब ?
आखिरकार अंधाधुंध जमीन की बिक्री क्यों? किस लिये?
अगर किसी मजबूरी जैसे कि इलाज /बच्चे की उच्च शिक्षा/ शादी के लिए जमीन की बिक्री की जा रही है तो कुछ हद तक क्षम्य है यह लेकिन अगर अपनी अकर्मण्यता छुपाने के लिए अपने पारिवारिक खर्चे चलाने के लिए ,फुटानी करने के लिए पूर्वजो की अर्जित सम्पत्ति को बेच रहे हैं तो यह अक्षम्य अपराध की श्रेणी में जरूर ही आएगा.
कई लोगो को देखता हूँ कि बस आदत सी बन गई है प्रत्येक साल कुछ न कुछ कारण से जमीन बेचने का और जमीन बेचकर बुलेट चढ़ने का, बाबू साहब कहलाने का. तो सोचिये की अगर आप अपने जीवनकाल में ही सभी संचित जमीनों को बेच डालियेगा तो आपकी आने वाली पीढ़ी जरूरत के वक्त कहा जाएगी? क्या करेगी?
भूमिहार की पहचान भूमि से ही होती है जब भूमि ही नही तो भूमिहार कैसा?
आजकल एक नया ट्रेंड भी चल गया है कि जमीन तो बेच ही रहे हैं फुटानी के लिए लेकिन विजातीय को? क्यों भाई सिर्फ 5-10 हजार विजातीय ज्यादा दे रहा है इसीलिए या और कोई कारण?
आज सुबह ही एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से मूलकात हुई, चेहरे पर सुस्त भाव थे तो मैंने अनायास ही पूछ दिया क्या हुआ भाई एकदम सुस्त दिख रहे हो तो बोला कि क्या बताये सर बगल में एक पासवान की बेटी का शादी है और रात भर भोंपू बजाकर रखे हुए हैं अब कौन उसको बोलने जाए ?
आश्चर्य हुआ कि वह गाँव तो भूमिहार बाहुल्य है फिर पासवान जी बीच में कहा से आ गए, तो बोला कि से फलाना चाचा अपना सारा जमीन धीरे धीरे बेच दिए और सब विजातीय को ही बेचे क्योंकि उनको अपने भाई से किसी बात का खुन्नस था. चूंकि अब उनको यहां रहना नही है वह तो अपने बेटा को सब जमीन बेचकर दिल्ली में मकान खरीद दिए हैं तो वही बस गए, अब जो खरीददार थे धीरे धीरे उन जमीनों में अपना मकान बना रहे हैं. अब गाव के बीचों बीच कई पासवानों और अन्य जातियों के घर बन गए हैं और वे लोग उत्पात मचाते रहते हैं कौन उनसे उलझने जाए. जबकि उनसे गाँव के कई लोग आरजू मिन्नत किये की बेच ही रहे हो तो हमको दे दीजिए लेकिन पता नही उनको क्या खुन्नस जो सब जमीन विजातीय के हाथों ही बेचे.
अब इसका क्या इलाज है?
समाज अपने आप को बुद्धिजीवी कहता है और इस मुद्दे पर अब गम्भीर चिंतन करने की आवश्यकता है कि अंदर से हम इतने बंट चुके हैं कि समाज या आने वाले भविष्य का नफा नुकसान समझे बिना ही अनर्गल कदम उठा ले रहे हैं. सभी बुजुर्गों अभिभावकों से विनम्र अनुरोध रहेगा कि अपने आने वाले पीढ़ी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए ही जब अतिआवश्यक हो तभी अपने पूर्वजों की संचित सम्पत्ति को बर्बाद करे. झूठी शान और घमन्ड में आ सबकुछ बर्बाद न करे अन्यथा आने वाली पीढ़ी इसका गम्भीर दुष्प्रभाव झेलेगी.
आजकल एकल परिवार का जमाना हो गया है और लगभग परिवारों में एकल पुत्र भी है.कई जगहों पर देखा गया है कि अपने पुत्र की अनर्गल मांगो की पूर्ति हेतु भी जमीन बिक्री की जा रही है क्योंकि आधुनिक पुत्रो को बुलेट /KTM बाइक चाहिए, एप्पल का फोन चाहिए ,ब्रांडेड कपड़े चाहिए तो अनावश्यक गार्जियन पर दबाब डालते हैं और गार्जियन भी डर से कहे या विवशता में उनकी मांगों को पूरा करने को विवश है.
कई लोगो से जब इस संदर्भ में बात की गई तो बोलते हैं कि भैवा तू न न समझेगा एक्के को बेटा है अगर कही जहर माहुर खा लिया त का करेंगे? यह भी एक यथार्थ है अनावश्यक जमीन बिक्री करने का और उनके बेटे सोशल मीडिया पर रॉयल भूमिहार/दबंग भूमिहार का टैग लगाए घूम रहे हैं.
अरे युवा भाइयो आप भी तो अपने भविष्य का सोचो कि अगर आप ही अपने अनर्गल मांगो के लिए अपनी जमीनों का बंटाधार कर लोगे तो आपकी आने वाली पीढ़ी कहा जाएगी क्या करेगी, जरा सोचिये विचारीये.