-डॉक्टर मनीष कुमार(प्रसिद्ध नयूरो सर्जन)
2020 बिहार विधान सभा में दलगत स्थिति और अगला पांच साल – उगता सूरज? या डूबता सूरज? या घुप अंधेरी रात ?
बिहार चुनाव का नतीजा बिहार की परिस्थितियों के लिए अति असाधारण है और बिहार के परिपक्व मतदाता का सूचक है । वैसे तो हंग असेंबली हीं कहा जाएगा पर चुनाव पूर्व गठबंधन के कारण सरकार बनाने में कोइ दिक्कत नहीं आएगी।
राजनैतिक दलों ने जनता को जितना प्यार से ठगने गुमराह करने की कोशिश किया – लाखों की नौकरी से लेकर ऐसे वैक्सीन की
जो अभी तक तो नहीं हीं बनी है – बनने की संभावना भी नगण्य है (यदि बन भी गयी तो उसका एफ्फेक्टिवनेस पर डाउट हीं रहेगा)
सबसे लुभाने या बेवकूफ बनाने की कोशिश का जवाब जनता ने भी उतने हीं प्यार से नितीश जी के #NDA का गला दबाकर पानी पीने के लिए छोड़ दिया तो तेजस्वी को आशीर्वाद तो दिया लेकिन थोड़ा कम। अब आगे क्या?
मजदूर गरीब खून पसीना बहाते हीं रहते हैं। पूंजीपति कब का बिहार छोड़ चुके हैं ।(समाजवाद को धन्यवाद के साथ जो यह सिखलाता है की अपने पूंजीपति को मार भगाओ और दूसरों के यहाँ जाकर वहां के पूंजी पति और गुंडों से जूते खाओ)।
मध्यम वर्ग को रोजी रोटी मिलेगी या जाति – धर्म पर आधारित उन्माद से हीं पेट भरेगा ?
पलायन एक मात्र रास्ता हो तो भी कम से कम वापस बिहार में घर बार सुरक्षित रहे और दिल्ली – मुम्बई के अपने नए समाज में सड़क पर चलता हुआ बिहारी इज्जत से सर उठाकर जी सकें और सुरक्षित रह सकें इसके लिए बिहार का अगला पांच साल – इसके विधान सभा में हर सदस्य का व्यवहार महत्वपूर्ण रहने वाला है।
चुनाव के समय और चुनाव से पहले खासकर कोरोना के समय दिल्ली और मुम्बई से पैदल आने वाले लोगों के लिए हाय तौबा मचाने वाले लोग क्या ऐसा माहौल बनाएंगे की मुम्बई के बदले बिहार में उद्योग धंधे लगें?
#NDA को बस काम लायक मेजोरिटी है – वह भी तब हीं तक जब तक VIP और HAM के नेता खुश रहें सबसे बड़ा चैलेंज तो यही है। पर केंद्र और राज्य दोनों जगह NDA सरकार के कारण यह थोड़ा आसान लगता है या कम से कम असंभव नहीं लगता है।
राजनैतिक स्थिरता के बाद लॉ एंड आर्डर और आर्थिक मुद्दे पर इस बार NDA को सॉलिड काम करना परेगा। यह कोइ अस्पष्ट बात नहीं है पर कैसे होगा यह विधान सभा में निश्चित होना है और विधान सभा के सभी सदस्यों पर निर्भर करेगा।
#NDA के घटक #JDU और BJP की अलग से बात करें तो जहाँ एक ओर JDU इन चुनावों में अपनी पकड़ खोती दिखी तो भाजपा की लाख कोशिश के बावजूद भी और मज़बूती की जरुरत स्पष्ट दिखी है । अगले पांच सालों में नितीश जी द्वारा किया गया कुछ अच्छा काम हीं इसके घटते प्रभाव को थाम सकता है। नितीश कुमार जी बहुत सौम्य, सुशिक्षित और धीर गंभीर नेता है पर इन चुनावों में लोग मजबूरी में ही उन्हें वोट किये है। नितीश जी जवाहर लाल नेहरू जी से ज्यादा बड़ा सेक्युलर श्री कृष्ण सिंह जी से ज्यादा बड़ा विकास पुरुष और लालू जी से बड़े सामजिक न्याय के प्रणेता हैं पर ना तो उन्हें 1947 का बिहार मिला न हिन्दुस्तान का बंटवारा न अयोध्या के राम और मंडल को इन्होने कभी ओढ़ा नहीं पर उनके इस व्यक्तित्व के बदले आयी बिहार में स्थिरता से आगे बढ़ने का समय आ गया है। आज भी ज्यादातर लोग उन्हें पसंद करते हैं जो लोग उन्हें वोट कर रहे हैं उसके बदले उन्हें कुछ बहुत बड़ा अच्छा काम करना होगा। दारू बंदी भर से काम नहीं चलेगा, कुछ बनाओ जिसे दुनिया में बेचा जा सके। यदि अगला पांच साल वे ऐसा कर पाए तो वे हमेशा के लिए बिहार के भगवान् की तरह पूजे जायेंगे।
BJP नितीश जी को दिल्ली नहीं ले जा पायेगी। नितीश कुमार को बनना होगा तो कभी प्रधानमन्त्री हीं बन जायेंगे। ऐसे में दो अलग पीपल का साथ में पनप पाना मुश्किल हीं है। दोनों को एक होना पडेगा, देखना है यह काम बीजेपी कैसे करती है।
आर्थिक मुद्दे पर बिहार में कुछ बड़ा संभव नहीं है – इस मिथ को बीजेपी केन्द्रीय नेत्रित्व हीं तोड़ सकता है और यह टूटना जरुरी है। 1965 के बाद केंद्र ने बिहार में कोइ बड़ा इन्वेस्टमेंट नहीं किया है – यह केंद्र सरकार हीं बदल सकता है। अगला पांच साल पूरे उत्तर – पूर्वी भारत में हिन्दू राजनीति को परिपक्व करेगी ऐसे में बिहार में मजबूती महत्वपूर्ण है। जातीय संघर्ष को भोथडा बनाना होगा, इसमें विधान सभा की भूमिका अहम् होगी और ऐसे में भाजपा कैसा रुख करती है यह देखना होगा और उस पर बिहार और भाजपा का भविष्य पता चलेगा ।
तेज प्रताप और तेजस्वी दोनों विधान सभा में – दोनों विपक्ष की कुर्सी पर – दोनों का विधान सभा में कॉन्ट्रिब्यूशन – उन दोनों के भविष्य के साथ बिहार का भविष्य भी निर्धारित करेगा। दोनों की रचनात्मकता और मौलिकता का पता अगले पांच सालों में चलेगा – यादव – मुसलमान बहुल 140 सीटों (जहाँ वे लरे भी) में से मात्र 75 पर सिमटने के बाद, अगले चुनाव में 2010 की तरफ बढ़ेंगे या 2015 की तरफ या 2025 की तरफ – यह इन दोनों भाईयों पर निर्भर करेगा – दोनों की राजनैतिक सामाजिक परिक्वता पर हीं बिहार का भविष्य निर्भर करेगा। बाहरी इन्वेस्टर्स भी तब तक बिहार में सुरक्षित नहीं महसूस करेंगे जब तक विपक्ष कायदे का न हो। दोनों भाईयों की हाल में किया हुआ राजनैतिक कोचिंग कितना सार्थक हुआ यह विधान सभा में और बाहर उनके अगले पांच सालों में व्यवहार से पता चलेगा। यदी सामाजिक समझ और अन्दर की आत्मा योग्य नहीं हो तो ऐसी कोचिंग ज्यादा प्रभाव नहीं करती है।
दोनों के पारिवारिक झगड़े भी इस पांच सालों में किसी किनारे पंहुंचने की उम्मीद की जा सकती है। किसी नई सामाजिक दिशा की उम्मीद इनसे तो नहीं है पर परिथितियों के साथ यदी ये सीख पाए तो कुछ भला हो भी सकता है।लालू जी का जेल से बाहर आना न आना अब उनका पारिवारिक मुद्दा भर है। शायद ये दोनो भाई भी यही चाहते होंगे की लालू जी सिर्फ आशीर्वाद देने आया करें। उनकी राजनैतिक छाया से दूर होने की जरुरत तो ये महसूस कर हीं चुके हैं। दोनों भाईयों का असली इनटर्नशिप अभी शुरू होगा। और 2025 में पूरा होगा – इस इन्टर्नशिप वाले विपक्ष से बहुत उम्मीद है बहुत कुछ नया हो सकता है पर सब इन दोनों भाईयों के अन्दर की आत्मा पर निर्भर करती है।
कांग्रेस डूबता हुआ जहाज है पर पर पूरे देश की तरह बिहार को भी इससे मोह छूट नहीं रहा है खासकर भोजपुर इलाके में जहाँ जातीय संघर्ष चरम पर है एक सचमुच के जाति निरपेक्ष धर्म निरपेक्ष दल की जरुरत बहुत ज्यादा है। बिहार के बाकी हिस्सों में भी कांग्रेस यदी #RJD की छाँव से बाहर आकर काम करे तो कांग्रेस और बिहार के लिए फ़ायदा होगा इस विधान सभा में कांग्रेस का रोल अहम् होने वाला है और यही बिहार कांग्रेस के साथ राष्ट्रीय स्तर पर उनके अस्तित्व को भी निर्धारित करेगा . . . विकास के लिए रचनात्मक रास्ते कांग्रेस हीं ढूंढ सकती है पर कैसे? यह सोचने वाला है क्या कोइ?
पच्चीस सालों बाद 16 कम्युनिस्ट विधान सभा में! भोजपुर इलाके में NDA साफ़, रणवीर सेना समाप्त . . . धरातल पर बैलेंस बिगड़ गया है। #CPI और #CPM की बात और थी, CPIML विकृत मानसिकता के लोग हुआ करते थे – कुछ अच्छा करेंगे? #CPIML लालू से भी ज्यादा जातिवादी और हिंसक संगठन हैं इसीलिए तेजस्वी ने उन्हें 19 सीट दिए। यदी ये सचमुच में वर्ग संघर्ष की बात को अमल में ला पाए तो अगली बार अपनी सीटों को कई गुना ज्यादा कर सकते हैं पर फिर इनका मुकाबला #NDA से ज्यादा #RJD और #Congress से हीं होगा। और तब बिहार हीं नहीं देश की राजनीति नया मोर लेगी। क्यूंकि स्वार्थहीन राजनीति में मोदी को यदी कोइ टक्कर दे सकता है तो वह ये लोग हीं हैं। भ्रष्ट्राचार में आकंठ डूबे जातिवाद का पर्याय बनी परिवार वादी पार्टियां नहीं। किन्तु तीस सालों बाद की यह पनकी, मार्क्स वाद को पुनः परिभाषित और पिछले तीस सालों के बदले भारतीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में – जहाँ शोषण के तरीके बदल गए हैं। पुनः स्थापित करने की जिम्मेवारी की समझ विकसित करने का काम कर पाएंगे या पुराने समाजवाद को ढोएंगे जो यह सिखलाता है की अपने पूंजीपति को मार भगाओ और दूसरों के यहाँ जाकर वहां के पूंजी पति और गुंडों से जूते खाओ। कोरोना के समय मुम्बई से पैदल आने वाले लोगों के लिए हाय तौबा मचाने वाले लोग क्या ऐसा माहौल बनाएंगे की मुम्बई के बदले बिहार में उद्योग धंधे लगें?
ओवैसी के पांच (और बहुजन समाज पार्टी का एक मात्र एम् एल ए भी मुसलमान है ) मुसलमानों की राजनीति में नया मोर ला सकता है . . . देखते हैं बिहार के लिए ये क्या करते हैं। उसी पर देश की राजनीति भी तय होगी। शेर शाह से यदि ये लोग कुछ समझ पाए तो पूरे हिन्दुस्तान के मुसलमानों के लिए अच्छा रहेगा लेकिन मौलाना आज़ाद को और शेर शाह को नजर अंदाज़ करने वाले आज के मुसलमान को रास्ता दिखलाने के लिए ओवैसी के पांच लोगों का रोल अहम् होगा। कुल मिलाकर यह विधान सभा #NDA सरकार के लिए नए चैलेंज और विपक्ष के लिए नयी परीक्षा का पांच साल लेकर आया है मध्यम वर्ग के लिए पलायन के सिवा कोइ रास्ता तो नहीं लगता पर कम से कम वापस बिहार में घर बार सुरक्षित रहे और दिल्ली – मुम्बई के अपने नए समाज में बिहारी इज्जत से सर उठाकर रह सकें इसके लिए बिहार का अगला पांच साल – इसके विधान सभा में हर सदस्य का व्यवहार महत्वपूर्ण है।
ugta suraj to nahi dikh raha shayad future mein najar aa jaye
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