– सुशान्त झा
ये कॉमरेड कन्हैया अनुपात में ज्यादा फुटेज बटोर रहा है. हमारे यहां एक हुए कॉमरेड भोगेंद्र झा. कई बार सांसद रहे. जगन्नाथ मिश्रा को एक बार ऐसा पटका कि मिसिर जी की राजनीतिक मृत्यु हो गई. हालांकि उसमें लालू युग के आगमन का भी कुछ रोल था, लेकिन उस सीट विशेष(मधुबनी) पर समझिए भोगेंद्र झा ही लेनिन थे, वहीं स्टालिन थे. लेकिन बिहार में राजद और भाजपा के उठान के बाद भोगेंद्र झा तीसरे नंबर पर भी रहे. फिर मधुबनी सीट से सीपीआई उठ नहीं पाई. सारे कॉमरेड रातोरात कमल या लालटेन में घुस गए. मधुबनी को भी बेगूसराय की तरह बिहार का मास्को या पता नहीं क्या-क्या कहा जाता था.
कन्हैया उनसे बड़ा नेता है? वह टीवी के युग का मोदी सरकार-निर्मित नेता है जो जेएनयू कांड और जेएनयू इकोसिस्टम का एक प्रोडक्ट है. याद रखिए उसे 4-5 हजार वोट में, क्लब स्टाइल पॉलटिक्स में और प्रेसीडेंसियल डिबेट वाली राजनीति की आदत है जो पर्चे-पोस्टर चिपकाने से थोड़ा ही आगे जाती है. वैसे भी JNU वाले बड़े चुनावों में ज्यादा कामयाब नहीं हो पाते. उनकी तुलना देश की आजादी के वक्त के उन राजे-महाराजों से की जा सकती है जिन्हें वी पी मेनन ने ‘”नाजुक पंछियों का झुंड” करार दिया था जो रजवाड़े के छिनते ही गर्म हवा के थपड़े नहीं सह सकते!
याद रखिए कन्हैया कुमार को उतना ही वोट मिलेगा जितना उनको JNU में मिलता था. कहने का आशय है कि सिर्फ 3 हजार नहीं मिलेगा, लेकिन 8-10 लाख वोट अगर पड़े तो उन्हें उसका 10 फीसदी से ज्यादा नहीं मिलेगा.
बिहार में ठोस वोट या तो राजद के पास है या बीजेपी गठबंधन के पास.
लेकिन कॉमरेडों ने ऐसा माहौल ताना है मानो स्टालिनग्राद में जर्मनों को खेत कर दिया हो.
(लेखक के एफबी वॉल से साभार)