Bhumihar Politics

आजकल ये कहने का चलन हो चला है कि, हम ठगे जा रहे, पिछड़ रहे, शोषित हो रहे..आदि आदि।

ये सारी बातें सिर्फ डराती हैं। एक और मृगमरीचिका में फंसाती हुई नजर आती है। असल वजह को बड़ी सफलता से छुपाती हैं और कारण सिर्फ इतना कि हमें सच्चाई नजर नहीं आती है। वास्तव में देखा जाए तो वर्तमान स्थिति का मूल कारण कहीं बाहर नहीं हमारे खुद के ही अंदर है …

1. स्वार्थ : यहां ज्यादातर लोग स्वार्थ से प्रेरित हैं इसी वजह से अलग अलग राहें (अपराध सहित) निर्मित हुईं और लोग टुकड़ों में उन सभी राहों पर चल रहे हैं। इसी कारण, फिर चाह कर भी एकजुट हो पाना मुश्किल हो जाता है।

2. दबंगई : ज्यादातर लोग दबंगई और अहम से ऊपर नहीं उठ पाते। गुलामी करवाना चरित्र का मूल है। मित्रवत और आदरसहित व्यवहार कर पाने में असमर्थता है। बिना गैरवाजिब लाभ या उसकी आशा के लंबे समय तक साथ चलना संभव नहीं है।

3. एकजुट : एक नेतृत्व को उभारने और उसका साथ देने की काबिलियत की घोर कमी है। समर्थन से ज्यादा सहज आलोचना और विरोध में एकजुट होने की तुच्छ प्रवृत्ति है।

4. नेतृत्व : आदत से लाचार हर कोई नेतृत्व करने की छद्म चाह में जीने के लिए मजबूर है। इसी कारण कोई शानदार नेतृत्व का उभरना संभव नहीं हो पाता। दूसरों को छोटा दिखा कर, छोटा बना कर, खुद बड़े बनने की विफल कोशिशें कदम कदम पर देखी जा सकती है।

5. अवसरवाद : ईमानदारी और वफादारी की घोर कमी है और इसके साथ ही अवसरवाद और ईर्ष्या-द्वेष के हम बहुत बड़े गुलाम हैं।

इन्ही मूल वजहों से दरअसल आज हमारी यह स्थिति है और हम महत्वहीन हैं। हमें सिर्फ इन 5 मुद्दों पर खुद में जबरदस्त और जल्द बदलाव को लाना होगा फिर देखिए परिणाम कितना सुंदर होगा। अपनी तमाम खूबियों में भी फिर निखार आएगा और हम बहुत कुछ सुंदर कर पाएंगे।

अवसरवाद और द्वेष की जगह सिद्धांतों के कारण हमारी एकजुटता हो। तब हम लंबे समय तक सहजता से साथ चल सकते और हम बहुत कुछ लाजवाब भी कर सकते हैं।

जातिवादी सोच भी एक जहर है। जातिवाद के नाम पर हम अन्याय और अधर्म का साथ नहीं दे सकते। हमें इंसानियत के लिए एकजुट होना होगा, न्याय के लिए एकजुट होना होगा। फिर देखिए कितने हीरे जगमगाएंगे और तब इंसानों का कितना भला होगा। परिणाम स्वरूप हम भी कहाँ छले, कहाँ पिछड़े और कहां डरे नजर आएंगे।

सबकी भलाई में ही खुद की भलाई है।।

(संजीव प्रियव्रत जी का एफबी वॉल से साभार)

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