– चित्रेश शर्मा
भूमिहारों को जहानाबाद में डॉ अरुण कुमार को वोट देना बहुत जरूरी है।
कभी बिहार की राजनीति का केंद्रबिंदु रहा भूमिहार समाज आज हाशिये पर है।श्रीबाबू,महेश बाबू,बीपी सिन्हा, एलपी शाही जैसे नेताओं का दौर इतिहास हो चुका है।क्या कारण रहा कि हम अपने पूर्वजों की विरासत को संभाल नहीं सके?कभी दूसरों को टिकट देने वाले आज हम स्वयं टिकट के लिए तरस क्यों रहे हैं? क्या कारण रहा कि हम राजनीतिक अछूत की तरह हो गए हैं? क्यों जहानाबाद, मुजफ्फरपुर,मोतिहारी, महाराजगंज,पाटलिपुत्र, वैशाली जैसी भूमिहार बहुल सीटों पर भी अब हमें कोई नहीं पूछ रहा है?
पिछड़ी जाति आधारित राजनीति के उभार से हमें पिछड़ों से अछूत होना पड़ा और नक्सलियों के उभार और तदुपरांत हिंसा-प्रतिहिंसा के दौर के बाद हम दलितों से अछूत हो गए।राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद मुसलमान एक तरफ केंद्रित हुए।इन परिस्थितियों में भूमिहार जाति के उम्मीदवार जहाँ भी खड़े होते,वहाँ ‘भूमिहार बनाम सभी’ जैसी लड़ाई हो जाती।इस तरह बहुत सी पारंपरिक सीटें हम से निकल गईं। लेकिन जहानाबाद में तो पिछली बार के विजेता भूमिहार ही थे फिर भी किसी गठबंधन को भूमिहार उम्मीदवार न उतारना अत्यंत विचारणीय है जिस पर जहानाबाद के बंधुओं को जरूर विचार करना चाहिए।
कारण जो हो, लेकिन इतना तय है कि अगर अरुण कुमार को भूमिहारों ने वोट नहीं किया तो शायद बहुत लम्बे समय तक हम जहानाबाद से भूमिहार सांसद नहीं देख पायें, पार्टियाँ समझ जायेंगी कि भूमिहार अपनी जाति के उम्मीदवार को भी वोट नहीं देते, तो फिर इन्हें टिकट ही क्यों दिया जाए!
एकदम सही बात है। गीले शिकवे होते रहेंगें। एक भाई ही दूसरे भाई के काम आएगा।अभी एकजुट रहना जरूरी है।
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