पिछले अंकों में आप नक्सल का मगध में पर्दापण , राजनैतिक परिदृश्य और सामाजिक ताने बाने में कम्युनिस्ट रूपी विष घुल जाना , चीनी षड्यंत्र तक पढ चुके हैं अब आगे।
( पिछला भाग १ – नक्सलवाद के मौलिक दर्शन पर सर्जिकल स्ट्राइक )
( पिछला भाग 2 – मगध में नक्सल का पदार्पण और भूमिहारों के खिलाफ षडयंत्र )
मित्रों आरंभ से सत्ता किसी की रही हो किन्तु ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की धुरी भूमिहार रहे हैं साथ ही ग्रामीण सांस्कृतिक और सामाजिक ताना बाना बाभनों के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं। भले ही कोर्ट प्रशासन राष्ट्र में हों किन्तु हमारे गाँवों के फैसले भुमिहारों के अध्यक्षता में आपसी सुलह और समझ से होते रहे हैं , यहीं से गाँधी ने पंचायती राज व्यवस्था का महत्व समझा था और पंचायती राज का सुझाव दिया था। यही व्यवस्था हमारे मजबूत सामाजिक एकता की नींव थी। इसका एक मामला सन् १९७६ का है जब पाईबिगहा थाने में एक दरोगा आये थे इनका नाम अगले खण्डों में उजागर करूंगा। उनका स्टेटमेन्ट था ये कैसा इलाका है जहाँ कोई मामला ही पुलिस तक नही आता ।मैं इस क्षेत्र को समझना चाहता हूँ ,। उन्ही ने बारीकि से अध्ययन के बाद बाभनों की ओर कृतज्ञता व्यक्त करते हुए युग के प्रादेशिक पृष्ठ जुलाई १९७८ अंक में लिखा था गर भूमिहार जैसे सम भाव वाले सामापिक पंचायती इकाई के धुरी पुरे राष्ट्र को मिल जाये तो देश को पुलिस की आवश्यकता नही है , भारत ऐसे में बस सेना विदेशियों के लिए रखे।
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मगध के बाबू नवल सिंह मुखिया बाबू त्रिवेणी सिंह जैसे धुरंधरों के निष्पक्ष न्याय पर कौन ऊंगली उठा सकता है ? अब मामला को समझते है भारत के सामाजिक ढाँचे को जब तक न तोडा जाता ञर्थिक ढाँचा अस्त व्यस्त न होता ये बात चीन जानता था इसलिए इस ढाँचे के स्तंभ भूमिहार समाज को टारगेट करना आवश्यक था । आप बंगाल त्रिपुरा असम माने पूर्व या उत्तर में नेपाल कही से भी देखे जहाँ से चीन और भारत की संस्कृति बिलकुल नही मिलती वहाँ भूमिहारों की मौजूदगी है और वहाँ सनातन संस्कृति है । जब तक संस्कृति भेद रहेगा चीन से लोग भेद करेंगे उसका सामान न खरीदेंगे इसलिए भी भुमिहार को टारगेट पर ले के बदनाम करना जरूरी था । आप खुद सोचे बुद्ध के बौद्ध मत का उद्गम गया मगध से है किन्तु पूरा मगध सनातनी है क्यों ? जबकि मगध में अशोक जैसे बौद्ध मत के प्रसारक राजा हुए हैं फिर भी मगध को बौद्ध रंग में क्यों न रंग पाये ? कारण यही सामाजिक व्यवस्था रही है जिसकी धूरी भूमिहार ब्राहमण रहे हैं जो जरूरत पड़ने पर कभी पुष्यमित्र शुंग तो कभी कुमारभट्ट बनकर मगध में ही नही पूरे भारत पर आये धर्मिक संकट को टालते रहे हैं । ऐसे में भूमिहार समाज को टारगेट करना जरूरी था। किन्तु कैसे ?
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जनता का भीषण समर्थन था भूमिहारों के पास फिर डायरेक्ट टारगेट कैसे किया जाये ? जमीन्दारी उन्मूलन करने वाला बिहार देश का पहला राज्य था और इस आंदोलन के जनक स्वामी सहजानंद भी भूमिहार थे प्रथम मुख्य मंत्री जिन्होने ये कानून लागू किया श्रीकृष्ण बाबू भी भूमिहार थे इसलिए आरंभ के वर्षों में डायरेक्ट प्रहार संभव न था । चीन के पास तब कानु सान्याल और चारू माजूमदार जैसे चेले भी न थे किन्तु ८० के दशक में भारतीय राजनीति करवट लेने लगी थी राजनैतिक षडयंत्र बढ रहे थे , तभी तमिलनाडु में जातिय विद्वेष का मामला आया antibrahmin movement फिर क्या था साँप मेंढक केंचुए जैसे वामी पत्रकार निकल पडे मगध के सामाजिक विन्यास को भी उसी आधार पर परिभाषित करने लगे , धीरे धीरे कर के जातिय रंग इस समाज में चढने लगा। किन्तु भूमिहार इन सब से बेखबर राष्ट्र निर्माण मे लगे रहे, भोले लोग चीनी षड्यंत्र भाँप न पाये , निद्रा तब खुली जब राजपूतों के एक गाँव में नक्सलियों ने भीषण जनसंहार कर ५२ महिलाओं पुरुषों बच्चों को कसाईयों के तरह काट दिया, बच्चियों से बलात्कार हुआ। १९४७ में ये राजपूत बिरादरी भूमिहारों के बिरोध में थी जब बाव बू मथुरा सिंह मुस्लिमों को मगध से खदेड २हे थे ।इन्ही के चलते नहरू ने मगध पर हवाई हमले कराये थे किन्तु जब नरसंहार हुआ सनलाईट नामक राजपूत और सैय्यद मुसलमानों के योग से बनी आर्मी के सैय्यद साथ न आये तब इन्हें भूमिहार समाज याद आया ,कुछ लोग पुराने मामले लेकर समर्थन को तैयार न थे किन्तु बडे बुजुर्गों ने मूलचंद दिक्षित जो भूमिहार थे पृथ्वी राज चौहान के प्रधान सेनापति और बहनोई थे का उद्धरण दिया , मूलचंद जी के भाई धूल चंद जी जयचंद के बहनोई थे , संयोगिता प्रकरण के कारण ये तराइन के अंतिम युद्ध में तटस्थ २हे थे , अन्यथा ये विश्व जानता है कि जब तक चौहान की सेना का कमान भूमिहोर ब्राह्मणों के हाथ में था चौहान जीतते आये थे। {पृथ्वी राज रासो में ये प्रकरण आप पढ सकते हैं।
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बुजुर्गों ने कहा पुनः वही गलती मत दुहराओ। बात मान कर सनलाईट आर्मी की कमान रामाधार सिंह डायमण्ड ने संभाल लिया और नाम रखा डायमण्ड सेना Tit for Tat के तर्ज पर कहाँ वार किया गया जो मगध में नक्सल का गढ था बरसिम्हा गाँव । मेन बरसिम्हा काण्ड के नाम से चर्चित इस काण्ड में दोषियों को सजा दी गयी किन्तु मिडिया इसी गलती के ताक मे था , खुलकर वामपंथी कलम चली , भूमिहार समाज को हत्यारा घोषित कर दिया गया । Mass mobilisation होते देख राजनेता भी अपना चूतड वामी चूल्हे पर सेकने लगे , नरसंहारों से इतना परिवर्तन ??? जिसके लिए वो शुरू से प्रयास में था एक झटके में हो गया , उसने नक्सल को आधुनिक हथियार दे बदले के लिए उसकाया जिसका परिणाम था बारा जनसंहार और फिर तो जैसे श्रीहरि विष्णु की पावन धरती रणक्षेत्र में बदल गयी । संग्राम समीति , पीपुल्स वार ग्रुप , IPF जैसी अनेक सशस्त्र सेनायें कुकुरमुते के भाँति जन्म लेने लगे , राजनीति से भूमिहार का नाम मिटने लगा और समाज में जैसे वो पूज्य से अछूत हो गया। नित प्रति हमारे खेतो पर आर्थिक नाकेबंदी , खलिहान जलाना , टैक्टर जलाना इन वाम नक्सल का काम । आखिर ऐसे में अखाडे का पहलवान वीर शिरोमणी शक्ति के धारक , गौर वर्णी अनुपम सौन्दर्य के धनी आकोपुर में जन्मे शान ए मगध चुप कैसे रहते ? अगले लेख में इनके जन्म संघर्ष और शहीदी तक की गाथा वो भी काव्य शैली में।
( लेखक ।।बाबू अंबुज शर्मा।।)