babu ambuj sharma

अनेकानेक विद्वानों ने मनगढंत या बिना पढे लिख डाला है कि मगध का नाम शाकल्द्वीपि ब्राह्मणों के नाम पर पड़ा है। शाकल्द्वीपि ब्राह्मणों के विषय मे कहा जाता है कि भगवान् श्रीकृष्ण साम्ब के रोग निवारणार्थ उन्हे शाक द्वीप से भारत लेकर आये थे , उनके भूलोक त्याग के पश्चात् गरूड जी के साथ शाकद्वीप लौटने के क्रम मे क्रन्दन सुन वे सर्वप्रथम मगध क्षेत्र मे उतरे। (प्रमाण -पं श्री गौरीनाथ पाठक की पुस्तक मगदर्शन ) – किंतु इन्होने इस कथा के संबंध मे कोई शास्त्रीय प्रमाण न दिया है न कोई श्लोक उद्धृत किया है फिर भी इस कथा की सत्यता मान भी लें तो लिखा है – “मगध मे उतरे” अर्थात् शाकल्द्वीपियों के आगमन के पूर्व भी उस प्रदेश का नाम मगध ही था।

महाभारत मे आदिपर्व के बाद ही सभा पर्व है , उसके बहुत समय बाद साम्ब का प्रकरण आता है। सभा पर्व मे भी जरासंध को मागध कह के संबोधित किया है भीम ने। देखें –

कृष्णे नयो मयि बलं जयः पार्थे धनंजये।
मागधं साधयिष्याम इष्टिं त्रय इवाग्नयः।।
महाभारत, सभापर्व, पञ्चदशोऽध्यायः श्लोक २३

( श्रीकृष्ण मे नीति है,मुझ (भीम) मे बल है और अर्जुन मे विजय की शक्ति है। हम तीनो मिलकर मगधराज के वध का कार्य पूरा कर लेंगे, ठीक उसी तरह जैसे तीनों अग्नियाँ यज्ञ की सिद्धी कर देती हैं।)

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इससे भी स्पष्ट जरासंध के जन्म तथा पिता का वर्णन देते समय भी श्रीकृष्ण उन्हे मगध का राजा बताते हैं जबकि ये सर्वविदित है कि जरासंध श्रीकृष्ण से उम्र मे काफी बड़ा था फिर साम्ब की तो बात ही अलग है –

अक्षौहिणीनां तिसृणां पतिः समर दर्पितः।
राजा बृहद्रथो नाम मगधाधिपतिर्बली।।
महा० सभा० अध्य०१७ श्लोक१३

( मगध देश में बृहद्रथ नाम से प्रसिद्ध एक बलवान् राजा राज्य करते थे।वे तीन अक्षौहिणी सेना के स्वामी और युद्ध में बडे अभिमान के साथ लडने वाले थे।)

कुछ लोग भ्रामक तथ्य देते हैं कि लिंग पुराण के ५३ वें अध्याय मे ऐसा लिखा है। लिङ्गपुराण मे शाक द्वीप का वर्णन है न कि शाकल्द्वीपि ब्राह्मण का स्वयं देखें : –

शाकद्वीपे च गिरयः सप्त तांस्तु निबोधत।
उदयो रैवतश्चापि श्यामको मुनिसत्तमाः।।
लिङ्गा ० अध्य० ५३ श्लोक १७

(शाक द्वीप में भी सात पर्वत हैं, उन्हें जानिए, हे श्रेष्ठ मुनियो ! उदय, रैवत , श्यामक , शोभा सम्पन्न राज पर्वत हैं । अम्बिकेय के बाद सभी प्रकार के औषधियों से युक्त रम्य पर्वत है।उसके बाद केसरी पर्वत है जहाँ से केसर सुगंध युक्त वायु उत्पन्न होती हैं।)  पूर्णतया भूगोल का वर्णन है किसी जीव का नही।

mahabharat

एक और भ्रामक प्रचार है कि शाकल्द्वीपियों को मग कहा जाता था उन्ही के नाम पर मगध नाम पडा ये भी सर्वथा भ्रामक है उन्हे मग नही मङ्ग कहा गया है शास्त्रों में प्रमाण स्वयं देखें –

मङ्गाश्च मशकाश्चैव मन्दगास्तथा।
मङ्गा ब्राह्मणभूयिष्ठाः स्वकर्मनिरता नृप॥
(महाभा० भीष्मपर्व० अध्या० ११ श्लोक ३६ )
(उनके नाम इस प्रकार हैं _ मंग, मशक, मानस तथा मन्दग।

नरेश्वर! उनमे मंग जनपद में अधिकतर ब्राह्मण निवास करते हैं।वे सब के सब अपने कर्त्तव्य पालन में तत्पर रहते हैं।)

स्पष्ट है शाक द्वीप के ब्राह्मण मङ्ग कहे जाते थे न कि मग।

अतः सुस्पष्ट है कि मग ब्राह्मण या मगध ब्राह्मण शाकल्द्वीपियों से सर्वथा भिन्न विशुद्ध मगध के ही ब्राह्मण हैं जिनके नाम पर कीकट प्रदेश मगध कहा गया।

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कुछ वाग्विलासी आत्मप्रवंचना करते हैं कि शब्दकल्पद्रुम मे ‘ ऋतवत’ शब्द शाकल्द्वीपियों के अर्थ मे है जबकि सत्य यह है कि ऋतवत का प्रयोग शब्दकल्पद्रुम मे मगों के लिए है न कि मङ्ग अर्थात् शाकल्द्वीपियों के लिए।

इसका प्रमाण ये भी है कि अथर्ववेद में ऋतावत शब्द मगध के परिपेक्ष्य मे तथा आध्यात्म काण्ड मे भी व्रात्यों की स्तुति मे आया है – ऐसे मे जब शाकल्द्वीपि महाभारत काल मे यहाँ आये हैं तो अथर्ववेद रचना का काल निश्चित द्वापर से पूर्व का है और उसमे भी मगध नाम उपर से व्रात्य स्तुति मे ऋतायत – इस से स्पष्ट है कि ये शाकल्द्वीपि विद्वान भ्रम के शिकार हैं।

एक और प्रमाण अधिकांश शाकद्वीपि विद्वान स्वयं के सूर्यपूजक होने का दावा करते हैं जबकि महाभारत भीष्म पर्व मे स्वयं वेदव्यास ने लिखा है कि शाकद्वीपि भगवान् शंकर की पूजा करते हैं प्रमाण देखें-

शाको नाम महाराज प्रजा तस्य सदानुगा ।
तत्र पुण्या जनपदा: पूज्यते तत्र शंकरः ।।
( महाभा० भीष्म पर्व ,अध्याय ११ श्लोक २८)

mahabharatइस से स्पष्ट है कि मगध के प्राचीन “मग” ब्राह्मण ही सूर्य पूजक हैं जबकि शाकल्द्वीपि बाद के कालों में आए और शिवोपासना शुरु की ।

( यह भी पढ़े – मगध में नक्सल का पदार्पण और भूमिहारों के खिलाफ षडयंत्र )

मगध क्षेत्र के किसी भी शाकल्द्वीपि ब्राह्मण के गाँव मे आज भी कोई प्राचीन सूर्य मंदिर नही है।
यह टिकारी राज्य का लिखित दस्तावेज है कि १८६४ तक ये मगध मे वैद्य का कार्य करते थे – १८६४ मे टिकारी नरेश की अनुशंसा पर इन्हे पाण्डित्याघिकार मिला था भूमिहार ब्राह्मण पंडितों से।

मगध क्षेत्र में देव मायर आदि अति प्राचीन सूर्य मंदिर जिन गाँवों मे हैं वो मगध के बाभनों अर्थात भूमिहार ब्राह्मणों का गाँव है तथा वही वहाँ परंपरा से पुजारी रहे हैं जिसका स्पष्ट प्रमाण बंगाल गजेटियर , देव की पाण्डित्य परंपरा , मुगल दस्तावेजों तथा प्राप्त ताम्र पत्रों से मिलता है।

वैसे भी यह सोचने वाली बात है क्या इनके आगमन से पूर्व मगध मे पाण्डित्य आचार्य कुलगुरु न थे, यदि परंपरा से राज्य का वर्णन है तो निश्चित धर्मदण्ड होगा । बाहरी पंडित का सत्कार भले हो किन्तु कुल गुरु थोडे बदले जाते हैं कभी ?

अतः ब्रह्मपुराण (अध्याय२०)का
मगा: ब्राह्मण भूयिष्ठा:
निश्चित् ही मगध के मूल मग ब्राह्मणों के लिए आया है।

भविष्य पुराण ब्रा. प. अ. ११९
सृजामि प्रथमं वर्णं मगसंज्ञं मनूपमम्
सूर्य के तेज से सर्वप्रथम मग नामक अनुपम वर्ण का सृजन किया।
ध्वनि वर्ण तथा सृजन सूर्य से संबद्ध है तथा आज भी मगध मे साकल्द्वीपियों मे सवर्ण गोत्र और हारित गोत्र नही हैं जबकि पुराणों से लेकर आर्क्यूलॉजिकल दस्तावेज ये दर्शाते हैं कि सर्वाधिक अग्रहार सवर्ण गोत्र तथा हारित गोत्र को मिला है जो मगध मे केवल बाभनो अर्थात भूमिहार ब्राह्मणो मे हैं (फोटो देखे- शाकल्द्वीपियों के मगध मे सभी ७२ पुरों के गोत्र, सभार- मग दर्पण ,पं सभानाथ पाठक बिहार )।

( यह भी पढ़े – क्या हम वास्तव में ब्रह्मर्षि हैं? )

अग्रहार वो गाँव होता है जहाँ केवल समगोत्रिय ब्राह्मण रहें बाकि अन्य जातियों के गाँव थोडी दूर पर अग्रहार क्षेत्र मे सेवा देने के लिए रहे , १९५९ मे बिहार के राज्यपाल रंगनाथ दिवाकर ने अपनी पुस्तक – बिहार थ्रू द एजेज मे आर्क्यूलॉजिकल तथा शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर बिहार के जिन जिन गाँवों को अग्रहार गाँव चिन्हित किया सभी भूमिहार ब्राह्मणों के गाँव थे – और आज़ तक विशुद्ध रूप से वैसे हैं कुछ भाँजों के गाँव मे बस जाने से थोडा संख्या अन्य गोत्र का भी हुआ है।

धूपमाल्यैर्जपैश्चापि ह्यपहारैस्थैव च।भोजयन्ति सहस्त्रांशुं तेनेते भोजकाः स्मृता ।।( भवि० ब्रा० अ० ११७)

मगों को ही भोजक भी कहा गया है।
हेमाद्रिकल्पतरु तथा भविष्य पुराण के अनुसार भोजक ब्राह्मणों को दिव्य ब्राह्मण कहा गया है-
भोजकादित्य जाताहि दिव्यास्ते प्रकीर्तिता।।

धन्यवाद्
मगध पुत्र
अंबुज शर्मा

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संदर्भ –

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