कोरोनावायरस को लेकर भारत में एक अजीब किस्म का भय भी है. ये भय इलाज को लेकर है. कोरोना के कई मरीज अस्पताल से भाग भी जा रहे हैं. ऐसे में जान पर खेलकर कोरोना मरीजों का उपचार कर रहे डॉक्टरों की मुश्किल और बढ़ जाती है. मरीजों के भागने का ठीकरा भी डॉक्टरों के मत्थे मढ दिया जा रहा है. इसी मुद्दे पर वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रत्नेश चौधरी लिखते हैं –
अब मरीज़ भाग जाए तो इसमें रेजीडेंट डॉक्टरों की क्या गलती ?वे इलाज़ करें कि सुरक्षा 24 घंटे ? इसमें सिक्योरटी की गलती हो सकती है। पर सिक्युरिटी वाले भी क्या करेंगे ?यदि कोई मरीज़ कहे कि वह पानी लाने जा रहा है..बाथरुम जा रहा है.. या खुद ही खाने,दवा लेने जा रहा है तो इसमें कोई उसे रोक नहीं सकता।रोक देगा तो भी बवाल मचेगा।फिर ये बे सिर पैर के नोटिस क्यों।हिन्दू राव अस्पताल का मुद्दा आप देख ही चुके हैं।
याद रखियेगा… आने वाले दिनों में स्वास्थ्यकर्मियों को ही हर तरह से दिक्कत होगी। स्वास्थ्य सुरक्षा से लेकर मोब लीचिंग भी। यही नहीं स्वस्थ्यकर्मियों को मरने के बाद भी चैन नहीं..2 ग़ज़ जमीन के लिये भी डॉ रेड्डी(आंध्र प्रदेश) और डॉ जॉन(शिलांग) तरस गए।
समाज को जाहिलपन से निकलने में ही भलाई है।
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