चर्चा की शुरुआत मैं आशीष सागर दीक्षित द्वारा लिखी गई पंक्तियों से करना चाहूंगा जो इस प्रकार है:
छद्म समाजवाद आज , सियासत की भेंट चढ़ गया ।
होर्डिंग वाला नेता भी , राजनीति पढ़ गया ।।
चालबाज अवसरों को, सुनियोजित तलाशते फिरे ।
सत्य पथ के सरल पथिक , अब चक्रव्यूह मे घिरें ।।
झूठ के प्रपंचियों का , छल आग्नेयास्त्र है।
पीठ पर खंजर उतारना ही ,आज समाजशास्त्र है ।।
उपरोक्त पंक्तियों में ही इस चर्चा का पूरा सार निहित है ।
07 मार्च 2021 को मुजफ्फरपुर के महेश प्रसाद सिंह साइंस कॉलेज के मैदान में ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर का आयोजन किया गया था जिसमें बिहार के कोने कोने से तमाम ब्रह्मर्षि भाई लोग उपस्थित हुए थे। मैं भी उस सभा का एक हिस्सा था और अपने सैकड़ों मित्रों एवं सगे संबंधियों के साथ वहां मौजूद था। सभा में उपस्थित सभी ब्रह्मर्षि की आंखों में उस सभा को लेकर तमाम तरह की आशाएं दिखाई दे रहे थे जैसे मानो कि बिहार में फिर से श्री बाबू का युग लौट गया हो ।
मैं भी काफी रोमांचित था उस सभा को लेकर और मेरे अंदर भी गजब का उत्साह और उमंग था क्योंकि सभा में उपस्थित सभी लोग उत्साह से लबरेज दिखाई पड़ रहे थे । ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर के सभा मंच से दो प्रमुख बातों की घोषणा हुई थी या यूं कहें कि वादे किए गए थे ।
पहला वादा था कि यदि कोई विजातीय किसी भूमिहार को तंग करता है या नुकसान पहुंचाता है तो 50 गाड़ियों के काफिले से जाकर उस भूमिहार के मान सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा हेतु समुचित पहल की जाएगी।
दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी घोषणा यह थी कि गरीब प्रतिभाशाली भूमिहार छात्रों की पढ़ाई के लिए 1 करोड़ का कॉरपस फंड बनाया जाएगा । लेकिन उस घोषणा के आज 4 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ । आश्चर्य की बात यह थी कि सभा में मंच पर उपस्थित लोगों के लिए 1 करोड़ का फंड चंद मिनटों में इकट्ठा कर देना एक तुच्छ बात थी लेकिन वो कहते हैं न कि नियत में ही जब खोट हो तो कुछ भी नहीं हो सकता। ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर की सभा के मंच पर जितने धनाढ्य लोग मौजूद थे , अगर वो लोग ईमानदारी से चाहते तो एक करोड़ क्या 100 करोड़ का भी फंड गरीब भूमिहार छात्रों के शैक्षणिक उत्थान के लिए मिनटों में इकट्ठा हो जाता जिससे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन होता जो आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होता और साथ ही साथ इन राजनैतिक लोगों को ब्रह्मर्षि समाज के एकमुश्त वोट के लिए इतना दर – दर भटकना भी नहीं पड़ता और न ही इतना कठिन परिश्रम और छल प्रपंच करने की भी जरूरत होती । लेकिन धूर्त और स्वार्थी लोग जहां सामाजिक सिरमौर बनने लगे, उस सभा और समाज का वही हस्र होता है जो आज भूमिहार समाज का हो रहा है।
ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर के उपरांत मुजफ्फरपुर में ही एक भूमिहार समाज की बेटी को एक विजातीय द्वारा बेच दिया गया , और यह खबर आग की तरह फैली लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई । मुजफ्फरपुर में ही एक भूमिहार बेटी को जिंदा जला दिया गया एक विजातीय द्वारा , लेकिन चहुं ओर चुप्पी छाई रही । इसके अलावा अनेकों घटनाएं ऐसी हुई जिनका अलग अलग उल्लेख करना इस संक्षिप्त लेख में संभव नहीं है ।
ऐसी अनेकों घटनाएं इस बात का गवाह हैं कि ये सारे आयोजन केवल समाज की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से किए जाते हैं जिसपर मुझे फिर से किसी सज्जन की लिखी हुई पंक्तियां याद आ रही है , जो इस प्रकार है :
जो दिख रहा है सामने , वो दृश्य मात्र है।
लिखी रखी है पटकथा , मनुष्य पात्र है।।
नए नियम समय के हैं , कि असत्य सत्य है।
भरा पड़ा है छल से जो , वही सुपात्र है।।
है शाम दाम दंड भेद , का नया चलन।
कि जो यहां कुपात्र है , वही सुपात्र है ।।
विचारशील मुग्ध हैं , कथित प्रसिद्धि पर ।
विचित्र है समय , विवेक शून्य मात्र है।।
दिलों में भेद भाव हो , घृणा समाज में ।
यही तो वर्तमान , राजनीतिशास्त्र है ।।
घिरा हुआ है पार्थ पुत्र , चक्रव्यूह में ।
असत्य साथ और सत्य , एक मात्र है।।
चलते चलते इस चर्चा को विराम देने से पहले एक अपील अपने समाज के बुद्धिजीवियों से करना चाहूंगा कि आप सभी लोग निद्रा से जागिए और अपनी अपनी आँखें खोलिए और इस तरह के प्रपंच से लबरेज आयोजनों की समीक्षा कीजिए ताकि इसपर विराम लग सके और इस तरह के आयोजनों के आयोजनकर्ताओं को आईना दिखाया जा सके जिससे उनके अंदर एक सकारात्मक परिवर्तन हो सके।