समाजसेवी रजनीकांत राय अब हमारे बीच नहीं रहे. दो दिनों पहले बेंगलुरु में उनका आकस्मिक निधन हो गया. उनकी याद में आज भूमंत्र पर ऑनलाइन श्रद्धांजली सभा का आयोजन किया गया जिसमें उनकी आत्मा की शांति के लिए एक मिनट का मौन भी रखा गया. उसके बाद उनके मित्र कुमार विरेन्द्र तिवारी ने अपने संस्मरणों को साझा किया. संस्मरण साझा करते हुए वे लिखते हैं –
2 अप्रैल 2020 को अपने दोस्त के मृत्यु की खबर सुनते हीं सन्न रह गया था मैं…..
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कितना आत्मघाती था वह पल,
जिसे सुनकर एक पत्नी बन गई होगी एक जिंदा ताबूत,
परिवार में पसर गया होगा एक अंतहीन सा सन्नाटा,
जब बेटे को को यह खबर मिली होगी,
कि उसके पिता को बचा नहीं पाए डॉक्टर,
आहिस्ता-आहिस्ता पिता के लिए तिल तिल जलता वह बेटा,
पल पल मरती वह बेटी जिसे,
मात्र एक महीने पहले हीं विदा किया था इस पिता ने,
और उनका पूरा परिवार मानो मर ही चुका है इस आकस्मिक क्षति से,
स्याह काली रात में छोटा भाई अपने बड़े भाई का शव लेकर,
निकल पड़ता है लम्बी यात्रा पर,
क्योंकि एक और भाई विचलित,
विह्वल आतुर है अपने श्रद्धेय का एक झलक पाने को,
परिवार के सभी सदस्यों और सगे सम्बन्धियों की निगाहें टकटकी लगाए हैं उस राह पर,
घर पहुंचते हीं कोहराम मच जाता है,
आंखें भूल जाती हैं रोना?
दिल चीत्कार उठता है,
भावनाएं तिक्त हो जाती हैं,
और दुखों से लिप्त उस परिवार के प्रति,
मैं एक दोस्त की शकल में,
सुबह की खामोशी तोड़ती,
परिजनों की दुखभरी चीत्कारों से टूट जाता हूं।।
मेरा दिल और जेहन,
मुझे झकझोर कर रख देता है,
खामोशी मृत्युपाश में बंधी,
मेरे मन की दीवारों को हिलाती है,
और मैं मौत की अभिव्यक्ति के लिए,
तलाशता हूं कोई शब्द या उपमा,
जो मैं अपने अजीज दोस्त की मृत्यु पर समर्पित कर सकूं।
गमगीन रूदन कोलाहल के बीच
दिल रोने को करता है,
किन्तु ये कमबख्त आंखें,
आंसू टपकाने से बचती हैं,
जिसमें मेरे दोस्त भले मुझे पत्थरदिल समझे,
ऐसे में मेरा अंतरमन खो जाता है,
गमों में अपने आंसू तलाश करने,
तब समझता हूं रो देना कितना दुविधाभरा है मेरे लिए,
पर फिर भी रो न सकना मन की बेबसी है।।
(कुमार विरेन्द्र तिवारी)
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