भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक से बढ़कर क्रांतिकारी हुए हैं जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिया. ऐसे ही एक क्रांतिकारी बैकुंठ शुक्ल हैं जिन्हें आज ही के दिन अंग्रेज हुकूमत ने फांसी की सजा दी थी. उस वक़्त उनकी उम्र महज 28वर्ष थी. गौरतलब है कि शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को जिस गद्दार फणीन्द्र नाथ घोष की गवाही पर 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. उसी गद्दार के कत्ल के जुर्म में बैकुंठ शुक्ल को गया सेंट्रल जेल में 14 मई 1934 को फांसी दी गई थी.
कौन हैं बैकुंठ शुक्ल ?
बैकुंठ शुक्ल का जन्म 15 मई, 1907 को पुराने मुजफ्फरपुर (वर्तमान वैशाली) के लालगंज थानांतर्गत जलालपुर गांव में हुआ था. उनके पिता राम बिहारी शुक्ल किसान थे. गांव में ही प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पड़ोस के मथुरापुर गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षक बनकर समाज को सुधारना शुरू किया. 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय सहयोग दिया और पटना के कैम्प जेल गए. जेल प्रवास के दौरान वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के संपर्क में आए और क्रांतिकारी बने.
1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षडयंत्र कांड में फांसी की सजा के एलान से पूरे भारत में गुस्से की लहर फ़ैल गयी. फणीन्द्र नाथ घोष, जो खुद रेवोल्यूशनरी पार्टी का सदस्य था, अंग्रेजी हुकूमत के दबाव और लालच में आकर वादामाफ़ गवाह बन गया और उसकी गवाही पर तीनों वीर क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. इसी घोष को विश्वासघात की सजा देने का बीड़ा बैकुंठ शुक्ल ने उठाया और 9 नवंबर 1932 को घोष को मारकर इसे पूरा किया. उन्होंने उस फणीन्द्र नाथ घोष को दिनदहाड़े बेतिया के मीना बाजार में कुल्हाड़ी से काट डाला जिसकी गवाही के आधार पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था. इसी घोष की हत्या के आरोप में उन्हें अंग्रेज सरकार की तरफ से फांसी की सजा मिली.
14 मई 1934 को गया केंद्रीय जेल में 28 वर्ष की उम्र में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल कर वे बैकुंठ शुक्ल से अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल बन कर इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमरत्व को पा गए. गौरतलब है कि वे महान क्रांतिकारी और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक योगेंद्र शुक्ल के भतीजे भी थे. उनके नाम पर भारत सरकार द्वारा डाक टिकट भी जारी किया गया है. भारत के इस महान क्रांतिकारी को नमन.
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Naman aise vir ko
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