कोरोनावायरस के कारण फैक्ट्रियां बंद है, दूकाने नहीं खुल रही, चारो तरफ सन्नाटा पसरा है. ऐसे में जीविका चलाना एक कठिन काम है. यही वजह है कि लोग अब अपना पेशा बदल रहे हैं और उस काम को कर रहे हैं जो उन्होंने कभी नहीं किया, लेकिन कोरोना का वायरस जो न कराये!
कोरोना संक्रमण के पहले आमतौर पर सब्जी बेचने के व्यवसाय को लोग निर्धन वर्ग का काम मानते थे, लेकिन आज यही व्यवसाय कई परिवारों की गृहस्थी की गाड़ी खींचने में मुख्य भूमिका निभा रहा है, जिन्होंने पहले कभी यह काम नहीं किया। कोरोना के दौर में ऐसे कई लोग हैं जिनका व्यवसाय बंद है या नौकरी छूट गई है, वो लोग सब्जी बेचकर अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं।
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई तरह के एहतियाती कदम उठाए गए, जिसमें दुकानें बंद हो गईं और कई के व्यवसायों पर ताले लग गए। ऐसे में लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया। चूंकि, आवश्यक वस्तु होने के कारण सब्जी को प्रतिबंध से बाहर रखा गया तो लोगों को इसी व्यवसाय में रोशनी की किरण दिखाई दी।
बिहार की राजधानी पटना सहित आसपास के कई क्षेत्र हैं, जहां के हजारों परिवार मुसीबत के इस समय में सब्जियां बेचकर अपना गुजारा कर रहे हैं। पटना के दुल्हिन बाजार के रहने वाले रवि प्रकाश ऑटो चलाते थे, लेकिन बंदी के कारण ऑटो चलना बंद हो गए। अब रवि ठेले पर हरी सब्जी लिए घर-घर जाकर सब्जी बेच रहे हैं और अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटा रहे हैं।
वैशाली जिले के हाजीपुर के रहने वाले मुकुल राय पास के ही औद्योगिक इलाके में एक लोहे के काम से जुड़ी कंपनी में अस्थायी श्रमिक के रूप में कार्य करते थे। लॉकडाउन में कंपनी ने उसे काम से हटा दिया। 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन बढ़ाये जाने की घोषणा के बाद उन्होंने सब्जी का कारोबार शुरू किया। इसमें उसे अच्छा मुनाफा हो रहा है। मुकुल ने बताया कि कंपनी खुलने पर सोचेंगे कि ड्यूटी ज्वाइन करना है या नहीं।
पटना के राजा बजार के रहने वाले मनेर के प्रवीण अपने पिता के साथ समोसे की दुकान लगाते थे। बंदी में दुकान बंद हुई तो आय का जरिया ढूंढते हुए आलू बेचने लगे। वह होल सेलर के यहां से आलू खरीद कर घर के सामने बेचते हैं। इससे किसी तरह परिवार का गुजारा हो पा रहा है।
हलवाई का काम करने वाले मनेर के ही मुकेश गोप भी इन दिनों सब्जी बेच रहे हैं। शादी-ब्याह व सार्वजनिक कार्यक्रम बंद होने के कारण उनके सामने रोजी-रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया था। बताया कि सरकारी मदद के रूप में सिर्फ चावल ही मिलता है। सब्जी बेचकर दूसरी जरूरतें पूरी हो जाती हैं।
पटना के फ्रेजर रोड में रंजन पहले ठेला चलाते थे पर जब काम मिलना बंद हो गया तो सब्जी बेचने लगे। उन्होंने बताया कि आज वे आलू-प्याज की दुकान लगा रहे हैं। ऐसे कई लोग हैं जो बेरोजगारी की स्थिति में सब्जियों के व्यवसाय से अपनी गृहस्थी चला रहे है क्योंकि लोगों को यही एक सहारा नजर आ रहा है। (एजेंसी)
aise hi pahal ki jarurat hai samaj ko
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