सुशांत झा
बेगूसराय से सांसद और बिहार बीजेपी के वरिष्ट नेता डॉ भोला प्रसाद सिंह ने कहा कि उन्हें ‘पोसुआ’(पालतू) न समझा जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि ‘हम कैलाशपति मिश्रा की संतान है और हमारे हाथ में कलम भी है और तलवार भी। हम पार्टी के लिए मरते-खपते हैं लेकिन जब लाभ लेने की बारी आती है तो कोई और ले जाता है’।
इस बयान की तल्खी समझनी हो तो हाल ही में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह जयंती के उपलक्ष्य में भी नेताओं के बयान देखे जा सकते हैं। वहां भी भोला सिंह आक्रामक थे और भूमिहार समाज के अन्य नेता भी। दरअसल, बिहार बीजेपी में जो खिचड़ी पक रही है उसके कई संदेश हैं जिसके आनेवाले समय में दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।
3 नवंबर को बिहार बीजेपी ने अपने भीष्मपितामह कैलाशपति मिश्र की दूसरी पूण्यतिथि मनाई थी जिसमें लगभग पूरी प्रदेश इकाई उपस्थित था। कैलाशपति मिश्रा जनसंघ के जमाने से ही पहले जनसंघ और बाद में जनसंघ के मुख्य कर्ता-धर्ता थे और वस्तुत: पूरी बिहार बीजेपी ही उनके हाथों गढी गई थी। आपातकाल से पूर्व भी जेपी और गोलवलकर को नजदीक लाने में उनकी अहम भूमिका थी। दो साल पहले जब उनका निधन हुआ तो खुद नरेंद्र मोदी उनकी अंत्येष्टि में शरीक हुए थे। जाहिर है, उनकी अपनी अहमियत थी।
कैलाशपति मिश्र जैसे कद के नेता को जातीय राजनीति के खांचे में बांटना उचित नहीं होगा लेकिन जिस तरह से पहले श्रीकृष्ण सिंह जयंती और अब कैलाशपति मिश्र की पूण्यतिथि पर भूमिहार नेताओं ने प्रदेश बीजेपी नेतृत्व के सामने अपना आक्रोष जाहिर किया है वह बहुत कुछ कहता है।
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव होनेवाला है और जिस तरह बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत हासिल की है और झारखंड में उसे अच्छे आसार नजर आ रहे हैं-वह एक मनोवैज्ञानिक बढत की स्थिति में है। अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होना है और प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद को लेकर घमासान जारी है। बिहार बीजेपी में सुशील मोदी के नाम पर आम सहमति नहीं बन रही है लेकिन एक सचाई यह भी है कि उनके कद का दूसरा नेता बिहार बीजेपी में नहीं है।
लोकसभा चुनाव के समय से ही भुमिहार समाज सुशील मोदी से कुछ उखड़ा-उखड़ा चल रहा है, जिसकी कई ज्ञात-अज्ञात वजहें हैं। सुशील मोदी के कद से कई नेताओं को लगता है कि दूसरे नेताओं को उभरने का मौका नहीं मिल पा रहा।
लेकिन ये भी सचाई है कि दूसरा मजबूत उम्मीदवार मैदान में नहीं है। बिहार में सुशील मोदी के बरक्श दूसरे उम्मीदवार जो हैं उनमें नन्दकिशोर यादव, सीपी ठाकुर, प्रेम कुमार, रविशंकर प्रसाद आदि हैं लेकिन इनमें किसी के नाम पर आमसहमति नहीं है।
लेकिन बिहार में जो सामजाकि-राजनीतिक हालात हैं उसमें ये भी एक तल्ख सचाई है कि किसी भूमिहार नेता का नाम आगे किए जाने से भी आमसहमति नहीं बनेगी। ऐसे में भोला सिंह जैसे नेताओं की तल्खी का मकसद क्या है?
दरअसल, भूमिहार नेताओं को मालूम है कि अभी उनके नाम पर आम सहमति शायद ही हो पाए। लेकिन वो ये भी देख रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में बिहार में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। ऐसे में उन्हें अपनी बात को आला कमान तक पहुंचाना है कि टिकट बंटवारे और सरकार बन सकने की स्थिति में उन्हें उनकी भरपूर हिस्सेदारी मिले। क्योंकि दूसरी तरफ सत्ताधारी जेडी-यू ने पर्याप्त संख्या में भूमिहारों को टिकट और मंत्रीमंडल में स्थान दिया है। ऐसे में भूमिहार समाज बीजेपी को इशारा कर रहा है अगर हमें पर्याप्त हिस्सेदारी नहीं दी गई तो हम किसी भी पार्टी से हाथ मिला सकते हैं।
दूसरी बात ये भी प्रदेश का भूमिहार नेतृत्व इस बात से असंतुष्ट है कि केंद्र की सरकार में समाज से एक भी नेता को मंत्री क्यों नहीं बनाया गया। वाजपेयी सरकार में सीपी ठाकुर को महत्वपूर्ण जिम्मेवारियां मिलीं थी लेकिन इस बार किसी को नहीं मिली। ले देकर एक मनोज सिन्हा को राज्यमंत्री बनाया गया लेकिन वे बिहार से बाहर गाजीपुर के हैं। ऐसे में भूमिहार समाज के नेता केंद्र सरकार को भी संदेश देना चाहते हैं कि उन्हें हल्के में न लिया जाए।
Title : Bihar Bjp Bhumihar Factor