राजनारायण राय ने इंदिरा गांधी को हराया था, देश की राजनीति को नया आयाम दिया था

भारतीय राजनीति के इतिहास में राजनारायण राय का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा हुआ है. दरअसल वे ऐसे शख्स थे जिन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा पलट कर रख दी. उन्होंने न केवल अजेय समझी जानी वाली इंदिरा गांधी को चुनाव में पराजित किया, बल्कि उनकी वजह से भारतीय राजनीति मेंजनता पार्टी का अभुय्दय भी हुआ. लेकिन इतनी महान हस्ती का शताब्दी समारोह तक सरकार मनाने से चूक गयी.समाजसेवी ब्रजेश कुमार का एक जरुरी आलेख – 
ब्रजेश कुमार, समाजसेवी
“एक साधारण से धनुष ने रावण को मार गिराया था क्योंकि वो सत्य का धनुष था, एक साधारण से व्यक्ति राजनारायण ने देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता के कुर्सी स हटा दिया था,क्योंकि वो सत्य के साथ काम करनेवाला व्यक्ति था – ये साल चंपारण शताब्दी समारोह के साथ-साथ महान नेता “राजनारायण राय” के शताब्दी का भी है । 
चंपारण शताब्दी के नाम पर करोड़ो खर्च हो रहे है मगर राजनारायण जी के स्मृति में किसी भी दल के तरफ से  कोई कार्यक्रम आयोजित नही की जा रही है । अगर राजनारायण नही होते तो आज देश यहाँ नही होती. दरअसल राजनीति, समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करनेवाले हर व्यक्ति को राजनारायण जी के बारे में जरूर जानना चाहिये । उन्हें  भारत की राजनीति में उन्हें बहुत विशिष्ट स्थान प्राप्त है। अगर राजनारायण न होते तो इस देश में आपातकाल नहीं लगता और न ही कभी जनता पार्टी अस्तित्व में आ पातीं। 
राजनारायण देश की हस्ती थे जिसने इंदिरा गांधी को हराया था जो कि अजेय मानी जाती थीं। आज इतिहास तो क्या पत्रकारिता के छात्र भी उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। स्वभाव के फक्कड़ इस नेता का जन्म 1917 में बनारस के हुआ था । उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमए एलएलबी किया। आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया। भारत छोड़ों आंदोलन में उनकी सक्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने उन पर 5 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था। आजादी के बाद वे आचार्य नरेंद्र देव, राममनोहर लोहिया की समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। उनके बारे में डा. लोहिया ने कहा था- उनका कलेजा शेर जैसा व आचरण महात्मा गांधी सरीखा है। अगर इस देश में 3-4 और राजनारायण मिल जाएं तो यहां कभी तानाशाही लागू ही नहीं हो सकती है। 
राजनारायण 1952 में उत्तरप्रदेश में विधायक बने और देश के इस सबसे बड़े राज्य के पहले विपक्ष के नेता बने। वे तीन बार राज्यसभा व एक बार लोकसभा के सदस्य बने। उन्होंने 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रुप में रायबरेली से चुनाव लड़ा और हार जाने के बाद उनके खिलाफ चुनाव में भ्रष्ट आचरण करने का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को छह साल के चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। फिर आपातकाल लगा और एक नया इतिहास लिखा गया। 
राजनारायण ने ब्रम्हा की तरह जनता पार्टी को जन्म देने में अहम भूमिका निभायी और विष्णु की तरह उसका संहार भी किया। वे मोरारजी देसाई से काफी नाराज थे क्योंकि उन्होंने उनको अपने मंत्रिमंडल में शामिल तो किया पर अंहमियत नहीं दी। वे चरण सिंह के काफी करीब थे व खुद को उनका हनुमान कहते थे। उसके बाद में वे इंदिरा गांधी के खिलाफ हो गए और जब उत्तरप्रदेश में पुलिस ने एक महिला के साथ बलात्कार किया तो उन्होंने नारा दे दिया कि ‘इंदिरा गांधी जाएंगी बलात्कार की आंधी में’। उनके पास 800 बीघा जमीन थी जो कि उन्होंने दलितों में बांट दी थी। जब वे मरे तो उनके बैंक खाते में मात्र 1450 रुपये थे ।

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