आदरणीय
प्रधानमंत्री जी,
प्रणाम।
कई वर्षों से आपको पत्र लिखने की सोच रहा था,लेकिन फिर ये सोंचकर रुक जाता था कि पता नहीं आप मेरे बारे में क्या सोंचते होंगे। आप तो जानते ही हैं कि नक्सली मीडिया मुझे प्यार से ‘कसाई’ कहता आया है।।पर मैंने कभी उसका बुरा नहीं माना।।भोले-भाले किसानों पर अत्याचार करने वाले नक्सलियों के लिए हाँ मैं कसाई हूँ और इसपर मुझे गर्व है।।बाबा ने भी मुझे यही सिखाया और उन्हें भी मुझपर नाज था।।
मानता हूँ कि लड़कपन में मुझसे एकाध गलतियां अनजाने में हो गयी जिसकी सजा आज भी भुगत रहा हूँ।।कई वर्षों से मुझपर सरकारी प्रतिबंध लगा हुआ है और खुलकर मैं अपना पूरा नाम भी नहीं ले सकता.पूरी दुनिया में एक बाबा अपने थे उन्हें भी मुझसे चार साल पहले धोखे से छीन लिया गया।।मैं उस वक्त खुलकर रो भी नहीं पाया,क्योंकि रणवीर कभी रोता नहीं।।बाबा को भी मेरा रोना पसंद नहीं था।।
अभियान से लौटकर कई बार अपनी क्रूरता पर रोना आता था।।लेकिन बाबा कहते कि आंसुओं को अंदर ही समेट लो,तुम रोओगे तो किसानों के आंसू कौन पूछेगा?? जंगल के हिंसक जानवरों से जान-माल और फसल की रक्षा के लिए हिंसक बनना ही पड़ता है।।क्रूरता और निष्ठुरता दिखानी ही पड़ती है।।यदि ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हारा अस्तित्व मिट जाएगा।।हिंसक जानवर का निवाला बन जाओगे।।इसलिए कोई तुम्हे कसाई भी कहता है तो कहने दो।।तुम रणवीर हो,तुम्हारा काम रण में दुश्मनों के दांत खट्टे करना है।।राजनेताओं को राजनीति करने दो।।वे किसानों का मर्म नहीं समझते।।असली कसाई तो वे हैं।।लेकिन उन्हें कभी शर्म नहीं आती।।तुमने तो किसानों के लिए लड़ाई लड़ी।।बदले में तुम्हे नक्सलियों के समर्थकों ने कसाई कह ही दिया तो उसे तारीफ़ समझकर कबूल करो।।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, बाबा की इस सीख को मैंने हमेशा ध्यान में रखा और नक्सली मीडिया के लाख उकसाने के बावजूद अपने लिए प्रयुक्त ‘कसाई’ शब्द पर सांकेतिक प्रतिरोध तक नहीं किया।।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मान रखा।।यदि प्रतिरोध करना चाहता तो कहने वाली की ज़बान थरथराती।। आप तो जानते ही हैं मेरे बारे में…. गिरिराज अंकल ने मेरे बारे में आपको विस्तार से बताया ही होगा।।वैसे नक्सली मीडिया ने हेडलाइन बनाकर उन्हें भी फंसाने की बहुत कोशिश की, लेकिन फंसा नहीं पाया.उनका मंत्री बनना भी बहुतों को खलता है कि टिका-चंदन और धोती वाला ये खांटी ज़मीनी नेता कैसे केंद्र में मंत्री बन गया.
ख़ैर पक्षपाती नक्सली मीडिया की बातों को क्या तवज्जो देना, उसने तो आपको भी ‘गुजरात का कसाई’, फासीवादी, हिटलर और न जाने क्या-क्या कहा! उनको तो बस ऐसे ही एजेंडा जर्नलिज्म करना है. उनका क्या दीन-ईमान! लेकिन दुख और गुस्सा तब आता है जब कोई मुझे खूंख्वार आतंकवादी (Dreaded Terrorist) कहता है और फिर यही शब्द ‘Dreaded Terrorist’ आईएसआईएस, अल कायदा, लश्करे तोयबा आदि के लिए भी इस्तेमाल करता है. यकीन न हो तो ‘Dreaded Terrorist’ गूगल कीजिये, टॉप टेन सर्च में आपको ऐसे ही संगठनों के नाम आयेंगे.
पीएम सर आप ही बताइए कि रणवीर की इन देशद्रोही और आतंकपरस्त संगठनों से क्या तुलना? आप बखूबी जानते हैं कि रणवीर के पीछे मेहनतकश किसानों की ताकत थी और आप जानते हैं कि मिट्टी से अन्न उपजाने वाला किसान कभी देशद्रोही और आतंकी नहीं हो सकता.हल-बैल छोड़कर अस्त्र-शस्त्र उठाया होगा तो कुछ तो उसकी मजबूरियां होंगी!
आप जानते हैं कि फसल तैयार होने पर उसे बर्बाद करने के लिए कैसे जंगली जानवरों का झुंड-का-झुंड दौड़ा चला आता है.उस वक्त किसान की प्राथमिकता होती है, अपने फसल की रक्षा करना और उसका इस दिशा में उठाया गया, हर कदम सही कहलायेगा.रणवीर की भी यही मजबूरी थी तो मुझे कसाई और खूंख्वार आतंकी कह डाला।।
लेकिन प्रधानमंत्री जी रणवीर ने कभी देशद्रोह और आतंकवाद फ़ैलाने का काम नहीं किया।।उलटे मैंने देशद्रोही नक्सलियों को उनके अंजाम तक पहुँचाया।।लेकिन बदले में मुझे बदनामी मिली।।बाबा को मुझसे जुदा करके सलाखों के पीछे वर्षों तक डाल दिया गया और जब वे बाहर आये तो उन्हें सदा के लिए मुझसे छीन लिया गया और उनके कातिल भी अबतक नहीं पकडे गए।।
फिर भी मैंने सब्र रखा।।कानून पर यकीन किया।।लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे रहा है।।जंगली जानवर लौट आये हैं।।वे इंग्लिश पथरा में ज़ुल्म कर रहे हैं।।वोट देने के अधिकार से वंचित कर रहे हैं।।महिलाओं का अपमान कर रहे हैं।।पत्रकारों को सरेआम गोली मार रहे हैं।।व्यापारियों को धमका रहे हैं।।मासूमों को अपनी गाड़ी के नीचे कुचल रहे हैं।। सेनारी के कसाई छूट रहे हैं।।वे हमें ललकारने की जुर्रत कर रहे हैं।।मेरी भुजाएं फिर से फड़क रही है।।आँखों में खून उतर रहा है।।इच्छा बलवती हो उठी है कि एकबार फिर से इन्हें सबक सिखा ही दूँ।। हल-बैल छोड़कर शस्त्र उठा लूँ।।दुश्मनों को बता दूं कि रणवीर अब भी रण में छक्के छुड़ा सकता है।।उसका वजूद खत्म नहीं हुआ है।।
लेकिन जब भी आगे बढ़ता हूँ बाबा रोक लेते हैं।।उनका ‘शांति’ का वायदा याद आ जाता है जिसके लिए उन्होंने अपनी जान तक दे दी।।वरना किसमें इतनी हिमाकत थी कि रणवीर के होते बाबा पर तिरछी निगाह भी डाल देता।।लेकिन कहते हैं न कि शांति की कीमत चुकानी पड़ती है उसी की कीमत तब भी चुकायी और अबतक चुकाते आ रहे हैं।।
लेकिन एकतरफा शांति संभव नहीं है प्रधानमंत्री जी।।हम आपके शासनकाल में अमन का रास्ता छोड़ना नहीं चाहते,क्योंकि जानते हैं कि आप न्यायप्रिय हैं और रणवीर के साथ अन्याय नहीं होने देंगे।।इसी आस से आपको खुला पत्र लिख रहा हूँ।। आपका समर्थन कर रहा हूँ।।नक्सलियों और देशद्रोहियों को कुचलने में आपका साथ देने के लिए तैयार खड़ा हूँ।।बस एक मौके का इंतज़ार कर रहा हूँ।।जल्द ही आपको दूसरा खत लिखूंगा ।।
आपका विश्वासी
रणवीर
उर्फ
रणवीर कसाई।।
ज़मीन से ज़मीन की बात – भू-मंत्र