हम भूमिहार-ब्राह्मण हैं और दान, त्याग, सहायता, अग्रसोच के साथ समग्र समाजिक उत्थान का हमारा एक वृहत्तर इतिहास रहा है. हम सब दिन आगे रहे है. आज भी हमारा समाज बल, बुद्धि, विद्या, कौशल में सबसे आगे है. धन-बल, बुद्धि-बल, बाहुबल के साथ योग्यता, क्षमता, कर्तव्यनिष्ठा आज भी हममें काफी है. सभी क्षेत्रों में आगे रहते हुये भी आज हम राजनैतिक क्षेत्र में बहुत पीछे जा रहे है. कारण क्या हो सकता है और इसका निदान क्या हो सकता है?
मेरे समझ में इसका कारण यह है कि वर्तमान में हमारे समाज में एक सर्वमान्य नेता का अभाव है और हमारे बिरादरी में किसी नेता के पास “vote transferring capacity” नही है. जबकि राम विलास पासवान, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जी में अपने स्वजातीय मतों को स्थानांतरित करने की शक्ति है. यह सच है कि हमारा समाज किसी भी परिस्थिति में लालू प्रसाद जैसे व्यक्तित्व का नेतृत्व नही मानेगा. जिस प्रकार लालू जी चारा घोटाला में जेल में गये थे, आज भी सजायाप्ता होकर सजा काट रहे है. अगर वह भूमिहार समाज से होते तो उनका सर्वाधिक विरोध हमारा ही समाज करता. जिस तरह राम विलास जी ने अपनी ब्याहता पत्नी को छोङकर पंजाबी औरत से शादी कर लिये, अगर वह हमारे समाज से होते तो सर्वाधिक विरोधअपने ही समाज से होता. यह हमारे समाज का एक संस्कार है कि हम गलत का विरोध करते रहे है और करते रहेंगे यह संस्कारगत हमलोगों में उचित के पक्ष में रहने की आदत है.
अब सवाल यह है कि जब हमलोग सब कुछ में उच्च है तो फिर राजनैतिक पकङ में कमजोर क्यो होते जा रहे है? कभी हमारे समाज के आदर्श श्री बाबू, बेनीपुरी जी, महेश बाबू, राजनारायण जी, बसाबन बाबू आदि सरीखे लोग रहे है लेकिन आज हमारे सामने किसका नेतृत्व है? पूर्व के दिनों में भी लगभग सभी राजनैतिक दलों के नेता हमारे पूर्वज रहे है, चाहे वह कांग्रेस की धारा हो, चाहे वह समाजवाद की धारा हो या फिर वामपंथ की धारा हो. सभी जगह हमारे पुरखों की दबदबा हुआ करता था. समाज के लोग इतने सजग थे कि बेनीपुरी जी का भी समर्थन करते थे और श्रीबाबू को भी गले लगाते थे. मेरे अपने गांव में ही मेरे दादा जी समाजवादी नेता थे और एक गोतिया के दादा जी कांग्रेस के नेता थे लेकिन जब चुनाव बेनीपुरी जी की आती थी तो चुनाव के वक्त मेरे दादाजी अपने कांग्रेसी गोतिया भाई को कुटमैता (सकरा) में जाने को बोल देते थे और वह सहर्ष गांव से बाहर प्रवास में चले जाते थे. एकतरफा बेनीपुरी जी के पक्ष में मतदान होता था. यह सब मैं बचपना में गांव में घुरा(आग का स्थान) के निकट बैठकर जाना था.
जैसे पुर्व में सभी राजनैतिक दलों में हमारे पुरखों का बोलवाला था, आज भी सभी दलों में हमारे समाज के लोग बैठे हैं. जैसे जदयू में ललन सिंह जी, भाजपा में सीपी ठाकुर जी, कांग्रेस में तो भरे पङे है (लेकिन अखिलेश सिंह जी वर्तमान परिदृश्य में), आरएलएसपी के तो गठन में ही अरूण बाबू की अतिमहत्वपुर्ण भूमिका रही और उन्हीं के सोच की परिकल्पना थी, अभी उन्होंने स्वयं की पार्टी स्थापित कर लिया है. पुर्व के हमारे नेताओं ने हमेशा समाज को लेकर चलने का प्रयास किया. किसी को इतनी बेचैनी नही थी कि स्वयं के परिवार को स्थापित करना है. श्री बाबू के एक पुत्र विधायक बने लेकिन श्री बाबू के इच्छा के विरूद्ध. बेनीपुरी जी के दामाद कई बार विधायक और एक बार सांसद बने लेकिन उनकी अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि थी. बसाबन बाबू के पुत्र अरूण बाबू विधायक बने लेकिन चौहत्तर के आन्दोलन के कारण स्वयं के बदौलत.
आज हमारे माननीयों की क्या स्थिति है? हम सब पढे लिखे और समझदार है, सब कुछ समझ में आ जाता है. हम तो लालू जी के बिरादरी से नही है कि वह जेलयात्रा से हाथी पर सवार होकर लौटे और हम उनका गुणगान करे. हम तो रामविलास जी के बिरादरी से नही है कि वह अपनी स्वजातीय ब्याहता पत्नी को छोङकर दुसरी शादी कर ले और उससे उत्पन्न पुत्र की भी गुणगान करे. पुर्णतः संपन्न, विवेकपूर्ण समाज से हम है. हम तो देखते है कि हमारा नेता व्यक्तिवादी है, समाजवादी है या फिर यथार्थवादी है. राजनारायण जी जैसे लोग भी हमारे समाज से ही थे. आठ हजार बीघा जमीन गरीबों में दान कर भी व्यापक स्वीकारता के बाद भी चुनाव लङते थे वह भी श्रीमति इंदिरा गांधी से. 1971 में मतगणना में चुनाव हारने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देकर श्री मति इंदिरा गांधी को पछाङकर अलबलाहट उत्पन्न कर दिये, फिर 1977 में मतगणना में भी पराजित कर ही दिये.
आज दोष दोनों में है हमारे नेता में भी और हममें भी. सबलोग अति स्वार्थ में है. नेता सोच रहा है कि हमने अपना काम निकाल लिया और हम सोचते है कि हमने अपना काम निकाल लिया. भाई नेताजी लोग आप कुछ आदर्श प्रस्तुत करे, हमलोग भी आपके साथ तो रहेंगे ही. हमको खलती है कि हमारा नेतृत्वकारी नही है. कौन नहीं चाहता कि हमारे घर में नेता न हो लेकिन कोई नही चाहता कि हमारा नेता व्यक्तिवादी, चाटुकार, खूनी, स्वार्थी और स्वयंभू हो. सभी नेताओ के चाल, चरित्र, योग्यता, क्षमता से सब भूमिहार वाकिफ है. भूमिहारों को किसी ने नही कहा था कि बीजेपी को पकङ लो, भूमिहारों को किसी ने नही कहा था कि कांग्रेस को छोङ दो, भूमिहारों को किसी ने नही कहा था कि लालू जी का भरपुर विरोध करो. स्वयं समझदार और कर्त्तव्यशील जाति है सब समझ लेगा. अपने आप में इतनी बौद्धिक क्षमता है कि लालू को लात मार मार कर लहेरियासराय भेज दिया. कोई तो अपना आदर्श प्रस्तुत करिये.
लेखक: श्री संजय चौधरी
(लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के निजी विचार है)
I do agree with the opinion given by
Sanjay ji about intellect of bhumihar.
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