Raksha Bandhan

आस्था की सनातन परंपरा में वैसे तो वर्ष के सभी 12 महीनों के अपने-अपने महत्व हैं। लेकिन श्रावण मास जिसे बोलचाल में सावन महीना ( Savan Month ) कहते है, उसका महात्म्य सर्वाधिक है। श्रावण ऐसा महीना है, जिसमें हर रोज व्रत, पूजन का विधान है। शायद इसीलिए इसे मासोत्तम यानि महीनों में उत्तम भी कहा गया है। सावन का महीना शिव ( Lord Shiva) और शक्ति ( Goddess Durga) की आराधना को समर्पित है। भगवान शिव को यह महीना सबसे प्रिय है। इसमें सोमवारी और पूर्णिमा तिथि (Purnima) का सर्वाधिक महात्म्य है। संयोग है कि इस बार सावन महीने की शुरुआत सोमवार से हुई और उसका समापन भी सोमवार को हो रहा है। उसी दिन श्रावण पूर्णिमा है। वर्षों बाद ऐसा संयोग हुआ है जब सावन में पांच सोमवारी पड़ा हो।

श्रावण मास की पूर्णिमा का हिन्दू परंपरा (Hindu Tradition) में विशेष महात्म्य है। यह ऐसी तिथि है जिस दिन तीन त्यौहार ( Festival) पड़ते हैं। पहला है श्रावणी पर्व। दूसरा है रक्षा बंधन और तीसरा है राष्ट्रीय संस्कृत दिवस। आइए अब विस्तार से उनपर प्रकाश डालते हैं-

श्रावणी पर्व-
बाकी महीनों की तरह सावन महीने का समापन भी पूर्णमासी के दिन होता है। उसी तिथि को श्रावणी का त्यौहार होता है। इसे ज्ञान shrawani Parvका पर्व माना गया है। विद्या, बुद्धि, विवेक और सदज्ञान की वृद्धि से इसे जोड़ा गया है। इस तिथि को वेदपाठ के लिए सर्वाधिक उत्तम माना गया है। धर्मग्रंथों में श्रावण सुदी पूर्णमासी को ‘ब्राह्म पर्व’ भी कहा गया है। प्राचीन गुरुकुल (Gurukul) परंपरा में इसी त्यौहार पर नये छात्रों का गुरुकुल में प्रवेश होता था। उनको स्नान कराकर, शुभ्रवस्त्र पहनाकर, शिखा सूत्र से युक्त कर यज्ञोपवित संस्कार देकर पढ़ाई का श्रीगणेश कराया जाता था। इन संस्कारों के बल पर ही गुरु-शिष्य के परम पवित्र संबंधों की पीठिका तैयार होती थी। कहते हैं वेद मंत्रों से अभिमंत्रित रक्षा सूत्र आचार्य लोग अपने शिष्यों के हाथ में बांधते थे, जो उनकी रक्षा-कवच का काम करता था। कह सकते हैं कि कालान्तर में वही परंपरा रक्षा बंधन के तौर पर मान्य हुई। आज भी श्रावणी पूर्णिमा के दिन यज्ञोपवीत की पूजा और उसे बदलने का कार्य सनातनी परिवारों में होता है।
भारत में गुरुकुल की प्राचीन परंपरा भले ही अब लुप्त हो गयी हो, लेकिन आधुनिक भारत में भी शिक्षा सत्र का आरंभ जुलाई मास से होता है, जो कहीं ना कहीं उसी परंपरा अनुसरण है।
आम भारतीय मानस में भी शुद्ध भाव से नदी-सरोवरों में स्नान कर भगवान भोलेनाथ के प्रसन्नार्थ शिवालयों में जलाभिषेक की पुरानी परंपरा है। कहते हैं कि भूत भावन भगवान शिव जल चढ़ाने से अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि पूरे सावन जल चढ़ाने से वंचित रहे भक्त यदि श्रावणी पूर्णिमा के दिन जल चढ़ा दे तो महादेव उसपर प्रसन्न होते हैं और फल देते हैं। इसीलिए अंतिम दिन शिवालयों में सर्वाधिक भीड़ होती है। देश के कई भागों में श्रावणी मेले लगते हैं और भगवान का झूलनोत्सव भी होता है।

रक्षा बंधन-
श्रावणी पूर्णिमा को मनाया जाने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्यौहार है रक्षा बंधन ( Raksha Bandhan)। यह सनातन धर्म का Raksha Bandhanविशेष पर्व है, जिसका उल्लेख वेद, पुराणों, उपनिषदों और दूसरे ब्राह्मण ग्रंथों में मिलता है। इसका प्रारंभ कब हुआ यह भी सनातन धर्म की तरह अज्ञात है। वैसे रक्षा बंधन को लेकर जन सामान्य के बीच कई तरह की पुरानी कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन सर्वाधिक प्रसिद्ध कथा है जब भगवान वामन को राजा बलि हरकर पाताल लोक लेकर चला गया, तो देवताओं के कहने पर लक्ष्मीजी ने बलि को रक्षा सूत्र बांधा और बदले में भगवान को छोड़ने का वरदान ले लिया। रक्षा बंधन का एक मात्र मंत्र जो प्रचलन में है, वह भी इसी घटना पर आधारित है-
मंत्र इस प्रकार है- “येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥” हिन्दी में इसका अर्थ हुआ- जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधती हूं, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित नहीं होना।

भारतीय धर्म शास्त्रों में व्रतों का संबंध वर्णों से जोड़ा गया है। प्राचीन शास्त्रों विशेषकर मनुस्मृति में जैसे चार आश्रम और चार वर्ण का विधान है, वैसे ही चार महत्वपूर्ण त्यौहारों का उल्लेख है। वे हैं रक्षा बंधन, दूर्गापूजा, दीपावली और होली। हिन्दी संवत्सर का पांचवा महीना सावन है और पहला व्रत रक्षा बंधन है। इसे ब्राह्मण वर्ण का पर्व माना गया है। प्राचीन काल में ब्राहमण ही तीर्थ स्नान के बाद अपने पुरोहितों के घर जाकर उनको रक्षा सूत्र बांधते थे और उनसे दान-दक्षिणा प्राप्त करते थे। कालान्तर में यह परंपरा भी लुप्त-सी हो गयी। हालांकि अब भी अनेक इलाकों में विप्र जनों द्वारा यजमानों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा चलन में है। समय के साथ इसमें परिवर्तन आया और राखी का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक बनकर रह गया। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता कि केवल बहन ही भाई को राखी बांध सकती है। धर्मशास्त्रों के जानकार आचार्य डॉ. कोसलेन्द्र शास्त्री कहते हैं – “हमारे प्राचीन शास्त्रों के मुताबिक ब्राह्मण अपने यजमान को, पत्नी अपने पति को, पुत्र अपने पिता को और बहन अपने भाई को राखी बांधने का अधिकारी है।“

राष्ट्रीय संस्कृत दिवस-
भारत जब आजाद हुआ तो सबसे पहले हिन्दी को राजभाषा के तौर पर मान्यता मिली और 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाने Sanskrit Diwasका क्रम आरंभ हुआ। नेहरुजी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में 1956 में ‘संस्कृत आयोग’ बनाया, जिसके अध्यक्ष थे सुनीति कुमार चटर्जी। उस आयोग ने 1969 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसमें अन्य बांतों के अलावे श्रावण पूर्णिमा को ‘राष्ट्रीय संस्कृत दिवस’ घोषित करने की सिफारिश थी। पहले संस्कृत आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही केन्द्र सरकार ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार एवं सरकार की संस्कृत संबंधी नीतियों एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए 15 अक्तूबर, 1970 को एक स्वायत्त संगठन के रूप में ‘राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान’ ( National Sanskrit Sansthan ) की स्थापना की थी। 58 साल बाद 2014 में दूसरा संस्कृत आयोग का गठन पद्मभूषण सत्यव्रत शास्त्री की अध्यक्षता में किया गया, जिसने 460 पृष्ठों की अंतिम रिपोर्ट केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग को सौंप दी है।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में प्रोफेसर डॉ. मुरली मनोहर जोशी जब मानव संसाधन विकास मंत्री बने तब उन्होंने संस्कृत दिवस को ‘संस्कृत सप्ताह’ कर दिया। तब से श्रावण पूर्णिमा के तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक संस्कृत से जुड़े आयोजन होते हैं। इसमें संस्कृत में व्याख्यान, संगोष्ठी, बच्चों के बीच वाद-विवाद और निबंध प्रतियोगिताएं आदि होते हैं। संस्कृत विद्वानों का सम्मान भी किया जाता है।

Dev Kumar Pukhrajलेखक परिचय: श्री देव कुमार पुखराज, मूलतः आरा, बिहार से हैं और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक जाने-माने नाम हैं। लेखक वर्तमान में न्यूज़ 18 चैनल से जुड़े हैं और हैदराबाद में वर्षों से रह रहे हैं। पत्रकारिता के अलावे सामाजिक क्षेत्र में भी हमेशा कार्य करते रहते हैं ।