Lieutenant Colonel Vidya Sharma

भूमिहार के किसी भी लिखित अलिखित इतिहास से पूर्व मेर इस आलेख को socio-scientific cap पहनकर खुले दिल से पूरी आलोचना और विष वमन के बाद ही कुछ और नया पढ़ें और उसपर अपनी प्रतिक्रिया दें। मुझे पूरा विश्वास है खुली मानसिकता के तार्किक एवं आधुनिक पाठक को इस लेख से आगे जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। ले.कर्नल विद्या शर्मा (से.नि.) का ब्राह्मण (भूमिहार) के इतिहास पर आलेख –

ब्राह्मण (भूमिहार) का इतिहास वर्तमान स्थिति और पुनरुद्धार के उपाय – History of Bhumihar Brahmin and Current Status In Hindi

भूमिका : ब्राह्मण (भूमिहार) या भूमिहार ब्राह्मण के इतिहास पर बात करने से पहले हमें ब्राह्मण के इतिहास पर गौर करना होगा इसके लिए श्रृष्टि की रचना पर विचार करना होगा| सिर्फ तभी हम भूमिहार ब्राह्मण के इतिहास को समग्रता से समझ सकेंगे|  श्रृष्टि-रचना की धार्मिक मान्यता के रहस्य को विज्ञान की कसौटी पर कसे बिना हम इसके वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ सकेंगे|

श्रृष्टि-रचना में श्रीमद्भागवतपुराण और डार्विन के सिद्धांत का विश्लेषण- Analysis of Srimad Bhagwatpuran and Darwin’s theory in hindi

श्रृष्टि-रचना के सिद्धांत की व्याख्या श्रीमद्भागवतपुराण (2/5/32-35) द्वितीय स्कन्द, पंचम अध्याय के श्लोक सं 32-35 में विशेष रूप से किया गया है हालांकि पूरा पांचवां और छठा अध्याय श्रृष्टि रचना की ही व्याख्या करता है| भागवतपुराण के अनुसार पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश)  की रचना करीब-करीब एक साथ एक के बाद एक हुई लेकिन वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी महाध्वनि (Big Bang Theory) की उपज है जो किसी बड़े ग्रह के सूर्य से टकराने से हुई|

भागवतपुराण के अनुसार पंचमहाभूत अपनी रचना के बाद बड़ी असंगठित अवस्था में थे जिसे चार्ल्स डार्विन ने अपनी पुस्तक ‘The Origin of Species’ में ‘Difused and Unsythecised State’ की संज्ञा दी है| मूलतः भागवतपुराण की असंगठित अवस्था और डार्विन का ‘Difused and Unsynthecysed State’ का अर्थ एक ही है| असंगठित अवस्था के ये महाभूत काफी लम्बे समय तक मूर्त पिंड का आकार नहीं ले पाए थे|

पंचमहाभूत जब संगठित हुए तब एक महाकाय ब्रह्माण्ड रूप अंड-पिण्ड बना| ब्रह्माण्ड रूपी पिंड सहस्त्र वर्षों तक निर्जीव अचेतन अवस्था में जल में पड़ा रहा|  इस निर्जीव पिंड और जल में जब क्षोभ हुआ जिसे डार्विन ने ‘Process of Agitation’ कहा अर्थात जल, वायु, आकाश और अग्नि के परस्पर भौतिक-रासायनिक प्रक्रिया से क्षोभ के कारण उस महापिंड में चेतना का संचार हुआ या वह जीवित हो गया| हमारा धर्मशास्त्र इसका कारण  इश्वरीय कृपा और डार्विन आदि आधुनिक वैज्ञानिक इसे ‘Physio-Chemical Reaction’ की प्रक्रिया कहते हैं| आज स्थिर जल जमावट में जब मच्छर, शैवाल आदि जलजीव पैदा हो जाते हैं तो हम उसे ईश्वरीय कृपा नहीं समझते|

हम इस बात पर जोर देकर किसी के धार्मिक विश्वास को प्रभावित करना नहीं चाहते लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि विज्ञान सदा धार्मिक रहस्यों और अंधविश्वासों पर से पर्दा उठाता आया है| जो चाँद कुछ वर्ष पहले तक हमारे लिए ‘चन्द्रलोक’ था वह आज मरुस्थल और बियावान पथरीला निर्जीव उपग्रह है| वैसे भी ब्रह्माण्ड को आकार देने वाले ‘Higs Bosone’ या ‘God Particle’ की खोज कर ली गई है और इसके अन्वेषक प्रोफेसर पीटर हिग्स को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है| वह दिन अब दूर नहीं जब श्रृष्टि की रचना का वैज्ञानिक तथ्य ही सामने होगा|

अब हम इस बात पर विचार करें कि वह विशाल चेतन पिंड क्या था| डार्विन उसे ‘विभिन्न गुण-रूपों के बैक्टीरिया का एक प्राकृतिक मूर्त रूप’ (Formation of Heterogeneous Bacterial Growth) कहता है| इस विशाल चेतन पिण्ड के विभिन्न हिस्से को उसकी आकृति के अनुसार मुँह, बाजू, वक्ष, जानू और पाद की संज्ञा दी गई जैसे बादल का विशाल पिण्ड कभी मुंह, हाथ या पैर की तरह नजर आता है और कभी किसी जानवर की तरह लगता है|  इसके विभिन्न हिस्से से इसकी प्रकृति के अनुसार विभिन्न जीव-जन्तु उत्पन्न हुए क्योंकि इसके विभिन्न हिस्सों की उर्वरा शक्ति भिन्न थी| (उदाहरणार्थ एक गन्ने के पौधे के विभिन्न हिस्से में गुणों के अनुसार मिठास अलग-अलग होती है)| यह चेतन पिण्ड कोई सौ-दो सौ गज में फैला हुआ नहीं बल्कि हजारों-हजार मील में फैला हुआ पदार्थ था और ऐसे ऐसे हजारों पिंड हजारों जगह फैले हुए थे जिससे देश-काल की भिन्नता एवं महाभूतों की स्थानीय विशेषताओं के चलते एक ही प्रकार के जीव के विभिन्न रंग, रूप और आकार बनते गए| कहीं हाथी सफेद तो कहीं हाथी कला, कहीं ऊंट तो कहीं जिराफ, कहीं मानव तो कहीं दानव| इसी के विभिन्न हिस्सों से सर्प, नाग, दानव, वृक्ष, लताएँ आदि सभी पैदा हुए| ये जीव-जन्तु भी सब अचानक एक साथ पैदा नहीं हुए|

अंतरिक्ष में मिले मच्छर के जीवाष्मों के अध्ययन से पता चला है कि मच्छर मनुष्यों से 50 करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुए थे जबकि मनुष्य की उत्पत्ति आज से करीब 16 से 20 करोड़ वर्ष पहले हुई थी| खुद पृथ्वी ही आज से करीब 4.55GA (Giga/Billion years) अरब साल पहले स्तित्व में आई है| क्रमिक विकास इतनी मंद गति से होता है कि मनुष्यों को ही अपने चार पैरों से दो पैरों पर खड़े होने में कई लाख वर्ष लगे| सबों पर डार्विन का क्रमिक विकास का सिद्धांत (Theory of Gradual Evolution) ही लागू होता है|

ब्राह्मण की उत्पत्ति- Origin of Brahmin

इस परिप्रेक्ष्य में अब हम ब्राह्मण की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विचार करें| हमारा शास्त्र कहता है :-
(१) ब्राह्मणो स्य मुखमासीद्बाहू राजन्य: कृत:।                                                                                               ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥ (अध्याय ३१(११) पुरुष सूक्त, यजुर्वेद)
(२) चतुर्वर्णम् मयाश्रिष्ठ्यम् गुणकर्माविभागशः (गीता)
यजुर्वेद ३१वें अध्याय के पुरुष सूक्त श्लोक सं ११ की पुष्टि ऋग्वेद, और अथर्ववेद के साथ श्रीमद्भागवतपुराण ने भी की है| इसका सटीक अर्थ समझने के लिए हमें पहले यजुर्वेद के श्लोक सं १० का अर्थ समझना होगा| दसवें श्लोक में पूछा गया है कि “उस विराट पुरुष का मुख कौन है, बाजू कौंन है, जंघा कौन है तथा पैर कौन है? इसके उत्तर में श्लोक सं ११ आता है जिसमे कहा गया है कि “ ब्राह्मण ही उसका मुख है, क्षत्रिय बाजू है, वैश्य जंघा है और शूद्र पैर है”| यह कहीं नहीं लिखा है कि प्रजापति (ब्रह्मा) के मुख से ब्राह्मण, बाजूओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शुद्र पैदा हुए| ऐसा अर्थ मात्र भ्रान्ति है| इस पर मैं कोई शास्त्रार्थ करना नहीं चाहता क्योंकि इसकी वास्तविकता मैं पहले ही बता चुका हूँ| हम तो उस दिन की कल्पना भर कर सकते हैं जब अणुओं के टकराव और विष्फोट से उत्पन्न हिग्स बोसोन या (God Particle) श्रृष्टि की रचना का पूरा सिद्धांत 40-50 वर्षों में बदल देगा| तब ब्राह्मण न तो मुख से पैदा हुआ माना जायेगा और नहीं शुद्र पैरों से|

ब्राह्मणों के कार्य- Works of Brahmins

अध्यापनमध्यायनं च याजनं यजनं तथा।
दानं प्रतिग्रहश्चैव षट् कर्माण्यग्र जन्मन:॥ 10।75
मनुस्मृति के इस श्लोक के अनुसार ब्राह्मणों के छह कर्म हैं| साधारण सी भाषा में कहें तो अध्ययन-अध्यापन(पढ़ना-पढाना), यज्ञ करना-कराना, और दान देना-लेना| इन कार्यों को दो भागों में बांटा गया है| धार्मिक कार्य और जीविका के कार्य| अध्ययन,यज्ञ करना और दान देना धार्मिक कार्य हैं तथा अध्यापन, यज्ञ कराना (पौरोहित्य) एवं दान लेना ये तीन जीविका के कार्य हैं| ब्राह्मणों के कार्य के साथ ही इनके दो विभाग बन गए| एक ने ब्राह्मणों के शुद्ध धार्मिक कर्म (अध्ययन, यज्ञ और दान देना) अपनाये और दूसरे ने जीविका सम्बन्धी (अध्यापन, पौरोहित्य तथा दान लेना) कार्य| जिस तरह यज्ञ के साथ दान देना अंतर्निहित है वैसे ही पौरोहित्य अर्थात यज्ञ करवाने के साथ दान लेना| इस तरह वास्तव में ब्राह्मणों के चार ही कार्य हुए – अध्ययन और यज्ञ तथा अध्यापन और पौरोहित्य|

याचकत्व और अयाचकत्व- Yaachakatv aur Ayaachakatv

ब्राह्मणों के कर्म विभाजन से मुख्यतः दो शाखाएं स्तित्व में आयीं – पौरोहित्यकर्मी या कर्मकांडी याचक एवं अध्येता और यजमान अयाचक| यह भी सिमटकर दो रूपों में विभक्त  होकर रह गया – दान लेने वाला याचक और दान देने वाल अयाचक| सत्ययुग से ही अयाचक्त्व की प्रधानता रही| विभिन्न पुराणों, बाल्मीकिरामायण और महाभारत आदि में आये सन्दर्भों से पता चलता है कि याचकता पर सदा अयाचकता की श्रेष्टता रही है| प्रतिग्रह आदि तो ब्राह्मणोचित कर्म नहीं हैं जैसा कि मनु जी ने कहा है कि :-

प्रतिग्रह समर्थोपि प्रसंगं तत्रा वर्जयेत्।
प्रतिग्रहेण ह्यस्याशु ब्राह्मं तेज: प्रशाम्यति॥ (म.स्मृ. 4/186)
‘यदि ब्राह्मण प्रतिग्रह करने में सामर्थ्य भी रखता हो (अर्थात् उससे होनेवाले पाप को हटाने के लिए जप और तपस्यादि भी कर सकता हो) तो भी प्रतिग्रह का नाम भी न ले, क्योंकि उससे शीघ्र ही ब्रह्मतेज (ब्राह्मणत्व) का नाश हो जाता है’। जैसा रामायण में स्पष्ट लिखा हैं और ब्रह्मर्षि वशिष्ट ने भी कहा है कि ‘उपरोहिती कर्म अतिमन्दा। वेद पुराण स्मृति कर निन्दा।’

भू-धन का प्रबंधन- Management of land money

दंडीस्वामी श्री सहजानंद सरस्वती जी के अनुसार अयाचकता और याचकता किसी विप्र समाज या जाति का धर्म न होकर व्यक्ति का धर्म हैं। जो आज अयाचक हैं कल वह चाहे तो याचक हो सकता हैं और याचक अयाचक। इसी सिद्धांत और परम्परा के अनुसार जब याचक ब्राह्मणों को दान स्वरूप भू-संपत्ति और ग्राम दान मिलने लगे तो याचकों को भू-धन प्रबंधन की जटिलताएं सताने लगीं| पौरोहित्य जन्य कर्मों में संलग्न याचक वर्ग दान में मिली भू-सम्पत्तियों के प्रबंधन के लिए समय नहीं निकाल पा रहा था| इसलिए आंतरिक श्रम विभाजन के सिद्धांत पर आपसी सहयोग और सम्मति से परिवार के कुछ सदस्य अपनी रूचि अनुसार भू-प्रबंधन में संलग्न हो गए|

ब्राह्मणों के पेशागत परिवर्तन के उदाहरण वैदिक काल में परशुराम, द्रोण, कृप, अश्‍वत्थामा, वृत्र, रावण एवं ऐतिहासिक काल में शुंग, शातवाहन, कण्व, अंग्रेजी काल में काशी की रियासत, दरभंगा, बेतिया, हथुआ, टिकारी, तमकुही, सांबे, मंझवे, आदि के जमींदार हैं।

भूदान-धन प्रबन्धक की विशेषताएं एवं इतिहास – ब्राह्मण की विशेष शाखा का उद्भव- Features and History of Bhoodan-Money Manager – The emergence of special branch of Brahmin In Hindi

आज भी किसी परिवार में प्राकृतिक श्रम विभाजन के सिद्धांत पर हर सदस्य अपनी रूचि अनुसार अलग-अलग काम स्वतः ले लेता है| कोई सरकारी दफ़्तर और कोर्ट कचहरी का काम संभालता है तो कोई पशुधन प्रबंधन में लग जाता है तो कोई ग्राम संस्कृति में संलग्न हो ढोलक बजाने लगता है तो कोई साधारण से लेकर ऊँची-ऊँची नौकरियां करने लगता है तो कोई पूजा-पाठ यज्ञादि में संलग्न हो जाता है| ठीक यही हाल याचकता और अयाचकता के विभाजन के समय हुआ| हालांकि उस समय किसी के उत्कृष्ट और किसी के निकृष्ट होने की कल्पना भी नहीं थी|

भू-संपत्ति  प्रबंधन में संलग्न परिवार शुद्ध अयाचकता की श्रेणी में अपने को ढालता गया| याचकों की आर्थिक विपन्नता और अयाचकों की भू-सम्पदाजन्य सम्पन्नता काल-क्रम से उत्तरोत्तर बढ़ती गई तथापि याचकों के सामाजिक प्रभाव और आत्मसम्मान में कोई कमी नहीं थी| ऐसा भी नही था कि याचक ब्राह्मण कृषि कार्य नही करता था लेकिन उसके पास विशेषज्ञता की कमी थी और आत्मसम्मान की अधिकता| वाल्मीकिरामायण के के अयोध्या कांड बत्तीसवें सर्ग के २९-४३वें श्लोक में गर्ग गोत्रीय त्रिजट नामक ब्राह्मण की कथा से अयाचक से याचक बनने का सटीक उदाहरण मिलता है:-

तत्रासीत् पिंगलो गार्ग्यः  त्रिजटो नाम वै द्विज;       क्षतवृत्तिर्वने नित्यं फालकुद्दाललांगली। ॥ 29॥
इस आख्यान से यह भी स्पष्ट हैं कि दान लेना आदि स्थितिजन्य गति हैं, और काल पाकर याचक ब्राह्मण अयाचक और अयाचक ब्राह्मण याचक हो सकते हैं और इसी प्रकार अयाचक और याचक ब्राह्मणों के पृथक्-पृथक् दल बनते और घटते-बढ़ते जाते हैं|

इसी तरह के संदर्भ का द्वापरकालीन महाभारत  में युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ में  ब्राह्मणों द्वारा  गोधन आदि भू-संपदा के उपहार और दान का वर्णन दुर्योधन द्वारा शकुनि के समक्ष किया गया है|

त्रेता-द्वापर संधिकाल में क्षत्रियत्व का ह्रास एवं अयाचक भू-धन प्रबन्धक द्वारा क्षात्रजन्य कार्यों का संचालन

मनुजी स्पष्ट लिखते हैं कि :
सेनापत्यं च राज्यं च दण्डनेतृत्वमेव च।
सर्वलोकाधिपत्यं च वेदशास्त्र विदर्हति॥ 100॥
अर्थात ”सैन्य और राज्य-संचालन, न्याय, नेतृत्व, सब लोगों पर आधिपत्य, वेद एवं  शास्त्रादि का समुचित ज्ञान ब्राह्मण के पास ही हो सकता है, न कि क्षत्रियादि जाति विशेष को।”

स्कन्दपुराण के नागर खण्ड 68 और 69वें अध्याय में लिखा हैं कि जब कर्ण ने द्रोणाचार्य से ब्रह्मास्त्र का ज्ञान माँगा हैं तो उन्होंने उत्तर दिया हैं कि :
ब्रह्मास्त्रां ब्राह्मणो विद्याद्यथा वच्चरितः व्रत:।
क्षत्रियो वा तपस्वी यो नान्यो विद्यात् कथंचन॥ 13॥

अर्थात् ”ब्रह्मास्त्र केवल शास्त्रोक्ताचार वाला ब्राह्मण ही जान सकता हैं, अथवा क्षत्रिय जो तपस्वी हो, दूसरा नहीं। यह सुन वह परशुरामजी के पास, “मैं भृगु गोत्री ब्राह्मण हूँ,” ऐसा बनकर ब्रह्मास्त्र सीखने गया हैं।” इस तरह ब्रह्मास्त्र की विद्या अगर ब्राह्मण ही जान सकता है तो युद्ध-कार्य भी ब्राह्मणों का ही कार्य हुआ|

उन विभिन्न युगों में भी ब्राह्मणों के अयाचक दल ने ही पृथ्वी का दायित्व संभाला| इससे बिना शंका के यह सिद्ध होता है कि भू-धन प्रबन्धक अयाचक ब्राह्मण सत्ययुग से लेकर कलियुग तक थे और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाये रखी हालांकि वे अयाचक ब्राह्मण की संज्ञा से ही विभूषित रहे| साहस, निर्णय क्षमता, बहादुरी, नेतृत्व क्षमता और प्रतिस्पर्धा की भावना इनमे कूट-कूटकर भरी थी तथा ये अपनी जान-माल ही नहीं बल्कि राज्य की सुरक्षा के लिए भी शक्तिसंपन्न थे|

क्षत्रियत्व का ह्रास

प्राणी रक्षा के दायित्व से जब क्षत्रिय च्युत हो निरंकुश व्यभिचारी और अधार्मिक कार्यों एवं भोग विलास में आकंठ डूब गए तो ब्रह्मर्षि परशुराम जी ने उनका विभिन्न युगों में २१ बार संहार किया और पृथ्वी का दान और राज ब्राह्मणों को दे दिया|
यहाँ पर मैं जरा सा संदार्भातिरेक करूँगा| प्रश्न उठता है कि अगर परशुराम जी ने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय-विहीन कर दिया तो बाद में क्षत्रिय कहाँ से आ गए? उत्तर यह है कि हालाँकि पौराणिक इतिहास में कहीं भी ऐसा संदर्भ नहीं है की उन्होंने क्षत्रियों के साथ  क्षत्राणियों का भी संहार किया| नारी सदा अवध्य ही रही| उन्हीं अवध्य जीवित क्षत्राणियों से ब्राह्मणों ने जो संतानें पैदा कीं वे क्षत्रिय कहलाये इसलिए क्षत्रिय भी ब्राह्मणों की ही संतानें हुईं| शास्त्र भी कहता है की ब्राह्मण वीर्य और क्षत्रिय रज से उत्पन्न संतान क्षत्रिय ही होती हैं ब्राह्मण नहीं| महाभारत में अर्जुन ने युधिष्ठिर से शान्तिपर्व में कहा है कि:

ब्राह्मणस्यापि चेद्राजन् क्षत्राधार्मेणर् वत्तात:।
प्रशस्तं जीवितं लोके क्षत्रांहि ब्रह्मसम्भवम्॥ अ.॥ 22॥
”हे राजन्! जब कि ब्राह्मण का भी इस संसार में क्षत्रिय धर्म अर्थात् राज्य और युद्धपूर्वक जीवन बहुत ही श्रेष्ठ हैं, क्योंकि क्षत्रिय ब्राह्मणों से ही उत्पन्न हुए हैं, तो आप क्षत्रिय धर्म का पालन करके क्यों शोक करते हैं?’

कलियुग में अयाचक भू-धन प्रबंधक की स्वतंत्र पहचान व् ब्राह्मणों में सर्वोच्च अधिकार

कलियुग में इस भू-प्रबन्धक की लिखित और अमिट छाप ईशापूर्व से स्पष्ट परिलक्षित होती है| सिकंदर ने जब 331 ईशापूर्व आर्यावर्त पर आक्रमण किया था तो उसके साथ उसका धर्मगुरु अरस्तू भी साथ आया था| अरस्तू ने क्षत्रियों की अराजकता और अकर्मण्यता के संदर्भ में उस समय के भारत की जो दुर्दशा देखी उसका बहुत ही रोचक चित्रण अपने स्मरण ग्रन्थ में इस तरह किया है:-

“Now the ideas about castes and profession, which have been prevalent in Hindustan for a very long time, are gradually dying out, and the Brahmans, neglecting their education,….live by cultivating the land and acquiring the territorial possessions, which is the duty of Kshatriyas. If things go on in this way, then instead of being (विद्यापति) i.e. Master of learning, they will become (भूमिपति) i.e. Master of land”.

“जो विचारधारा, कर्म और जाति प्रधान भारतवर्ष में प्राचीन काल से प्रचलित थी, वह अब धीरे-धीरे ढीली होती जा रही हैं और ब्राह्मण लोग विद्या विमुख हो ब्राह्मणोंचित कर्म छोड़कर भू-संपत्ति के मालिक बनकर कृषि और राज्य प्रशासन द्वारा अपना जीवन बिता रहे हैं जो क्षत्रियों के कर्म समझे जाते हैं। यदि यही दशा रही तो ये लोग विद्यापति होने के बदले भूमिपति हो जायेगे।” आज हम कह सकते हैं कि अरस्तू की भविष्यवाणी कितनी सटीक और सच्ची साबित हुई|

In the year 399 A.D. a Chinese traveler, Fahian said “owing to the families of the Kshatriyas being almost extinct, great disorder has crept in. The Brahmans having given up asceticism….are ruling here and there in the place of Kshatriyas, and are called ‘Sang he Kang”, which has been translated by professor Hoffman as ‘Land seizer’.

अर्थात “क्षत्रिय जाति करीब करीब विलुप्त सी हो गई है तथा बड़ी अव्यवस्था फ़ैल चुकी है| ब्राह्मण धार्मिक कार्य छोड़ क्षत्रियों के स्थान पर राज्य शासन कर रहे हैं”|

राज्य संचालन

यद्यपि अयाचक ब्राह्मणों द्वारा राज्याधिकार और राज्य संचालन का कार्य हरेक युग में होता रहा है लेकिन ईशापूर्व चौथी-पांचवीं सदी से तो यह कार्य बहुत ही ज्यादा प्रचलित हो गया और इसने करीब-करीब एक परम्परा का रूप ले लिया| इसमें सर्व प्रमुख नाम 330 ई.पू. सिकंदर से लोहा लेने वाले  सारस्वत गोत्रीय महियाल ब्राह्मण राजा पोरस, 500 इस्वी सुधाजोझा, 700 ईस्वी राजा छाच, और 1001 ईस्वी में अफगानिस्तान में जयपाल, आनंदपाल और सुखपाल आदि महियाल ब्राह्मण राजा का नाम आता है जैसा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती ने ‘ब्रह्मर्षि वंशविस्तर’ में लिखा है|

भू-धन प्रबंधक ब्राह्मणों में “भूमिहार” शब्द का प्रथम ज्ञात प्रचलन- Bhumihar Shabd Ka Prachalan

हालांकि भूमिहार शब्द का पहला जिक्र बृहतकान्यकुब्जवंशावली १५२६ ई. में आया है लेकिन सरकारी अभिलेखों में प्रथम प्रयोग 1865 की जनगणना रिपोर्ट में हुआ है| इसके पहले गैर सरकारी रूप में इतिहासकार बुकानन ने 1807 में पूर्णिया जिले की सर्वे रिपोर्ट में किया है| इनमे लिखा है :-

“भूमिहार अर्थात अयाचक ब्राह्मण एक ऐसी सवर्ण जाति जो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिये जानी जाती है। इसका गढ़ बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश है| पश्चिचमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में निवास करने वाले भूमिहार जाति अर्थात अयाचक ब्राह्मणों को त्यागी नाम की उप-जाति से जाना व पहचाना जाता हैं।“

एम.ए. शेरिंग ने १८७२ में अपनी पुस्तक Hindu Tribes & Caste में कहा “भूमिहार जाति के लोग हथियार उठाने वाले ब्राह्मण हैं (सैनिक ब्राह्मण)। पं. परमेश्वर शर्मा ने ‘सैनिक ब्राह्मण’ नामक पुस्तक भी लिखी है|
अंग्रेज विद्वान मि. बीन्स ने लिखा है – “भूमिहार एक अच्छी किस्म की बहादुर प्रजाति है, जिसमे आर्य जाति की सभी विशिष्टताएं विद्यमान है। ये स्वाभाव से निर्भीक व हावी होने वालें होते हैं।“

विक्रमीय संवत् 1584 (सन् 1527) मदारपुर के अधिपति भूमिहार ब्राह्मणों और बाबर से युद्ध हुआ और युद्धोपरांत भूमिहार मदारपुर से पलायन कर यू.पी. एवं बिहार के बिभिन्न क्षेत्रों में फ़ैल गए| गौड़, कान्यकुब्ज सर्यूपारी, मैथिल, सारस्वत, दूबे और तिवारी आदि नाम प्राय: ब्राह्मणों में प्रचलित हुए, वैसे ही भूमिहार या भुइंहार नाम भी सबसे प्रथम कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के एक अयाचक दल विशेष में प्रचलित हुआ।

भूमिहार शब्द सबसे प्रथम ‘बृहत्कान्यकुब्जकुलदर्पण’ (1526) के 117वें पृष्ठ पर मिलता है| इसमें लिखा हैं कि कान्यकुब्ज ब्राह्मण के निम्नलिखित पांच प्रभेद हैं:-

(1) प्रधान कान्यकुब्ज
(2) सनाढ्य
(3) सरवरिया
(4) जिझौतिया
(5) भूमिहार
सन् 1926 की कान्यकुब्ज महासभा का जो 19वाँ वार्षिक अधिवेशन प्रयाग में जौनपुर के राजा श्रीकृष्णदत्तजी दूबे, की अध्यक्षता में हुई थी|स्वागताध्यक्ष जस्टिस गोकरणनाथ मिश्र ने भी भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग माना है|

जमींदार/भूमिहार- Landlord / Bhumihar

यद्यपि इनकी संज्ञा प्रथम जमींदार या जमींदार ब्राह्मण थी लेकिन एक तो, उसका इतना प्रचार न था, दूसरे यह कि जब पृथक्-पृथक् दल बन गये तो उनके नाम भी पृथक-पृथक होने चाहिए| परन्तु जमींदार शब्द तो जो भी जाति भूमिवाली हो उसे कह सकते हैं। इसलिए विचार हुआ कि जमींदार नाम ठीक नहीं हैं। क्योंकि पीछे से इस नामवाले इन अयाचक ब्राह्मणों के पहचानने में गड़बड़ होने लगेगी। इसी कारण से इन लोगों ने अपने को भूमिहार या भुइंहार कहना प्रारम्भ कर दिया। हालांकि जमींदार और भूमिहार शब्द समानार्थक ही हैं, तथापि जमींदार शब्द से ब्राह्मण से अन्य क्षत्रिय आदि जातियाँ भी समझी जाती हैं, परन्तु भूमिहार शब्द से साधारणत: प्राय: केवल अयाचक ब्राह्मण विशेष ही क्योंकि उसी समाज के लिए उसका संकेत किया गया हैं।

आईन-ए-अकबरी, उसके अनुवादकों और उसके आधार पर इतिहास लेखकों के भी मत से भूमिहार ब्राह्मण लोग ब्राह्मण सिद्ध होते हैं। कृषि करने वाले या जागीर प्राप्त करने बाले भूमिहारों के लिए ‘जुन्नारदार’ शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका मतलब होता है “जनेऊ पहनने वाला ब्राह्मण”| फिर वहाँ भूमिहार लोग ब्राह्मण हैं या नहीं इस संशय की जगह ही कहाँ हैं?

जाति के रूप में भूमिहारो का संगठन- Organization of Bhumihars as caste

भूमिहार ब्राह्मण जाति ब्राह्मणों के विभिन्न भेदों और शाखाओं के अयाचक लोगो का एक संगठन है| प्रारंभ में कान्यकुब्ज शाखा से निकले लोगों को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया, उसके बाद सारस्वत, महियल, सरयूपारी, मैथिल, चितपावन, कन्नड़ आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इन लोगो से सम्बन्ध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों में मिलते गए| मगध के बाभनो और मिथिलांचल के पश्चिमा तथा प्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणों में ही सम्मिलित होते गए|

भूमिहार ब्राह्मण महासभा- Bhumihar Brahmin Mahasabha

१८८५ में द्विजराज काशी नरेश महाराज श्री इश्वरी प्रसाद सिंह जी ने वाराणसी में प्रथम अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा की स्थापना की| बिहार और उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मणों की एक सभा बुलाकर प्रस्ताव रखा कि हमारी एक जातीय सभा होनी चाहिए| सभा के प्रश्न पर सभी सहमत थे| परन्तु सभा का नाम क्या हो इस पर बहुत ही विवाद उत्पन्न हो गया| मगध के बाभनो ने जिनके नेता स्व.कालीचरण सिंह जी थे, सभा का नाम ‘बाभन सभा’ करने का प्रस्ताव रखा| स्वयं महाराज ‘भूमिहार ब्राह्मण सभा’ के पक्ष में थे| बैठक में आम राय नहीं बन पाई, अतः नाम पर विचार करने हेतु एक उप-समिति गठित की गई| सात वर्षो के बाद समिति की सिफारिश पर “भूमिहार ब्राह्मण” शब्द को स्वीकृत किया गया|
१९४७ में ३३वां अखिल भारतीय सम्मलेन टिकारी में पं. वशिष्ठ ना. राय की अध्यक्षता में हुआ| अनेकों संस्कृत विद्यालयों/महाविद्यालयों के संस्थापक/व्यवस्थापक स्वामी वासुदेवाचार्य जी इसके स्वागताध्यक्ष थे| टिकारी सम्मलेन के बाद ४७ वर्षों तक कोई अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण सम्मलेन नहीं हुआ क्योंकि राजा रजवाड़े रहे नहीं जो सम्मेलन आयोजित कराते थे हालांकि क्षेत्रीय सम्मलेन विभिन्न नामों से होते रहे|

१९९४ जून में ३४वां अधिवेशन टिकारी अधिवेशन के ४७ वर्षों बाद अखिल भारतीय भूमिहार बाह्मण सम्मलेन सिमरी, जिला बक्सर बिहार में हुआ विद्वानों और समाजसेवियों के सानिध्य में आचार्य पं. रामख्याली शर्मा की अध्यक्षता में हुआ| इसी सिमरी ग्राम में स्वामी सहजानंद सरस्वती जी ने अपने महान ग्रंथ कर्मकलाप, ब्रह्मर्षि वंश विस्तर, और भूमिहार ब्राह्मण परिचय लिखे हालांकि सीताराम आश्रम, बिहटा, पटना जिला उनका अंतिम निवास था| इस तरह भूमिहार ब्राह्मण महासभा का ११४ वर्षों के इतिहास में मुख्यतः ३४ अधिवेशन हुए हालांकि सभाएं तो पचास से ज्यादा हईं| इसके बाद भी सभाएं तो बहुत हुईं लेकिन उसका क्रमानुसार नामकरण नहीं किया गया|

परिचय देना

जैसे कान्यकुब्ज या सर्यूपारी अदि ब्राह्मणों से पूछने पर वे लोग प्रथमत: ‘आप कौन हैं?’ इस प्रश्न का उत्तर ‘ब्राह्मण हैं’ ऐसा देते हैं। उसके बाद ‘कौन ब्राह्मण हैं?’ इस प्रश्न पर ‘सर्यूपारी या कान्यकुब्ज ऐसा बतलाते हैं। वैसे ही अयाचक ब्राह्मणों से पूछने पर कि ‘आप कौन हैं?’ उन्हें कहना चाहिए कि ‘ब्राह्मण हैं’। पश्चात् ‘कौन ब्राह्मण हैं?’ ऐसा पूछने पर ‘अयाचक अथवा भूमिहार, पश्चिमा,  त्यागी, महियाल ब्राह्मण हैं’ ऐसा उत्तर देना चाहिए।

राजाज्ञा – बनारस, टिकारी, बेतिया, तमकुही आदि- Raajaagya – Banaras, Tikari, Bettiah, Tamkuhi etc.

1793  के स्थायी भू प्रबंध के समय में आज के सभी भूमिहार राजाओं के पूर्वज ‘ब्राह्मण’ कौम से ही जाने जाते थे| जैसे दस परगने की जमींदारी टिकारी के राजा मित्रजित सिंह कौम ब्राह्मण को, फतह नारायण सिंह कौम ब्राह्मण हथुआ राज, राजा मानसाराम वल्द मनोरंजन मिश्र कौम ब्राह्मण आदि|

ईस्ट इण्डिया कम्पनी की कार्यवाही की जाँच के लिए जो सिलेक्ट कमिटी बैठी थी, उसकी जो पाँचवीं रिपोर्ट बंगाल प्रेसिडेन्सी के विषय में प्रकाशित होकर सन् 1812  ई. में लन्दन में छपी हैं, उसके प्रथम भाग के 511 से 513 पृष्ठों तक ऐसा लिखा हुआ हैं – इसमें सभी भूमिहारों को ब्राह्मण ही लिखा गया है:-

”सूबा बिहार” (प्रथम सरकार) बिहार
(3) 10 परगनों की जमींदारी मित्राजीत सिंह कौम ब्राह्मण, टिकारी के निवासी को मिली|
(5) अरंजील और मसौढ़ी इन दो परगनों के जमींदार जसवन्त सिंह वगैरह ब्राह्मण थे।
(9) सौरत और बलिया ये दो परगने खासकर हुलास चौधुरी और आनागिर सिंह नामक ब्राह्मणों की जमींदारी थी।
(11) ग्यासपुर परगने की जमींदारी शिवप्रसाद सिंह ब्राह्मण की थी और उसमें छोटे-छोटे जमींदार भी शरीक थे।

8 फरबरी 1912 का यू.पी. शिक्षा विभाग का पत्र -U.P. Education department letter

G 15320
No ——— —1911-12
X-25
From,
The Hon’ble Mr. C. F. De La Fosse M.A.
Director of Public Instruction
United Provinces.
To
The Secretary,
Bhumihar Brahman Sabha. Benares.
Dated Allahabad. 8th Feb., 1912.
With reference to his letter dated the 7th September, 1912, has the honour to inform him that the Inspectors of schools have been requested to show Bhumihars as Brahmans in the Annual Statistical Returns.(आपको सूचित किया जाता है कि वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट में भूमिहार को ब्राह्मण ही दिखायें)
S/d P.S.Barell M.A.
Assistant Director of P.I.
For C.F. De La Fosse M.A.
Director of P.I., U.P.

अयोध्या का मुकद्दमा-Ayodhya case

आनंद भवन बिहारी बनाम राम दुलारे त्रिपाठी ACJ Faizabad Suite No 22/1962 – पं. राम दुलारे ने कहा कि महावीर शरण भूमिहार हैं, ब्राह्मण नहीं अतः आनंद बिहारी ठाकुरबाड़ी के सर्बकार नहीं हो सकते क्योंकि सर्बकार सिर्फ विरक्त ब्राह्मण ही हो सकता है भूमिहार नहीं| कोर्ट ने डिक्री पास किया कि भूमिहार हर हाल में ब्राह्मण है| इस आशय की कई डिक्रियां अदालतों ने पास किये हैं|

अन्य प्रान्तों में भूमिहार ब्राह्मणों के नाम/उपाधि- Name / title of Bhumihar Brahmins in other provinces In Hindi

भूमिहारों का ब्राह्मणत्व से विचलन व् बढ़ती दूरियां :  बनारस(काशी), टिकारी, अमावां, हथुआ, बेतिया और तमकुही आदि अनेक ब्राह्मणों (भूमिहार) के राज्यारोहण के बाद सम्पूर्ण भूमिहार समाज शिक्षा, शक्ति, और रोआब के उच्च शिखर पर पहुँच गया था| चारो ओर हमारे दबदबे की दहशत सी फैली हई थी| लोग भूमिहारों का नाम भय मिश्रित अदब से लिया करते थे| सर्वाधिकार प्राप्ति और वर्चस्व के लिए भूमिहार शब्द ही काफी था|

धीरे धीरे हमने विवेकशून्यता का प्रदर्शन करना शुरू किया| फिर भूमिहार शब्द के साथ तमाम नकारात्मक विशेषण जुड़ने लगे| हमने भूमिहार शब्द के चाबुक का प्रयोग हर उचित-अनुचित जगह करना प्रारम्भ किया| भूमिहार शब्द का नशा हमारे दिलो-दिमाग को इतना विषाक्त कर दिया कि हमारे पैर जमीन पर नही टिकते थे| हरेक भूमिहार चाहे वह साधारण कर्जदार खेतिहर रैयत ही क्यों न हो, वह इन रियासतों के मालिक से अपने आप को कमतर नहीं आंकने लगा| खेत में भले ही वह मगधनरेश रूपी रैयत अपने मजदूर के साथ कंधा से कंधा मिलाकर धान-गेहूं की कटाई करे पर क्या मजाल कि गली से गुजरते वक्त वह मजदूर गली में खटिया निकालकर सामने बैठे रहने की जुर्रत कर ले|

हाल यह हुआ कि हम अब ब्राह्मणों से अलग अपनी एक जाति समझने लगे| हमारे उम्र के लोगों को याद होगा कि जब बचपन में शादी के लिए अगुआ आता था तो हमें घर के लोग बताते थे कि अगुआ पूछेगा कि “बबुआ आप कौन जात के है?” तो बताना कि “हम भूमिहार ब्राह्मण हैं”| लेकिन आज हम अपने को ब्राह्मण या भूमिहार ब्राह्मण कहने में अपनी तौहीन और सिर्फ भूमिहार कहने में अपनी शान समझते हैं| अब तो हाल यह है कि “न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे”|

भूमिहार ब्राह्मणों की वर्तमान स्थिति- Current status of Bhumihar Brahmins

अब तो हम खालिस भूमिहार जाति के हो गए और ब्राह्मणों ने हमसे दूरी बना ली| अब जब हमारे युवा स्वयं अपनी जड़ और अपना इतिहास पूरी तरह भूल गए हैं तो अन्य जातियां उनपर फब्तियां कसती हैं और पूछती हैं कि भूमिहार कौन सी जात है? न ब्राह्मण, न राजपूत, न वैश्य और न शुद्र!!! तुम तो ‘Mixed Breed’ (मिश्रित जाति) के हो| तुम्हारा अपना कोई इतिहास नहीं है, आदि-आदि| जब हम अपना इतिहास ही नहीं जानते तो उन्हें जवाब क्या देंगे? हम बगलें झाँकने लगते हैं और फेसबुक पर पूछते हैं कि हमारा इतिहास क्या है?

“वो परिंदा जिसे परवाज से फुर्सत ही न थी;         आज तनहा है तो दीवार पर आ बैठा है|”

यह किसकी गलती है? किसने हमे दम्भ में चूर होकर अपने को ब्राह्मण से अलग होने के लिए कहा? हमारे पूर्वज ब्राह्मणों ने तो हमे मदारपुर सम्मेलन से ही अपना माना था| कान्यकुब्ज हों या सरयूपारी दोनों ने ही सदा हमें अपना कहा| लेकिन हमें तो टिकारी, बेतिया और काशी नरेश बनना था| अयाचक्त्व के नशे में हमने अपने आप को अपने आधार से नीचे गिराकर अंतहीन अंधकूप में डाल दिया| शिक्षा और उन्नति की हर विधा को तिलांजलि देकर हमने मगध नरेश बनने का सपना देखा| ‘Firsr deserve then desire’ अर्थात ‘पहले काबलियत हासिल करो तब ख्वाब देखो’ के मूल मंत्र को भूमिहार के रोब में कोई स्थान नहीं दिया और नतीजा है कि आज हम अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार बैठे हैं| हम क्या थे और क्या हो गए| आज हमें दूसरों से नहीं अपनों से ही डर सता रहा है|

“मेरा अज्म इतना बुलंद है, कि पराये शोलों का डर नहीं; मुझे खौफ आतिशे-गुल से है, कहीं ये चमन को जला न दे||”

आज हम कठिन परिश्रम से जी चुराते हैं और सब कुछ बिना प्रयास के अपनी थाली में पाना चाहते हैं| “We want everything on a Platter” हाँ, यह बात ठीक है कि आज के ‘Welfare State System’ अर्थात कल्याणकारी राज्य व्यवस्था में आरक्षण आदि बहुत से प्रावधान हमारे समाज की उन्नति में बाधक हैं लेकिन सरकारी प्रतियोगिताजन्य नौकरियों के अलावे अभी भी Private Sector  में अपार संभावनाएं हैं जहां योग्यता की पूछ, इज्जत और जरुरत है और अपनी क़ाबलियत दिखाने के असंख्य अवसर| कौन रोकता है हमें| “सितारों के आगे जहां और भी है”|

भूमिहार ब्राह्मणों के पुनरोद्धार का उपाय- Remedy for revival of Bhumihar Brahmins

अंग्रेजी में एक कहावत है –“It is never too late” किसी भी अच्छे काम की शुरुआत के लिए कभी देर नही होती| हमने अपने आप को गहरे जख्म अवश्य दिये हैं लेकिन मर्ज ला-ईलाज नहीं हुआ है| हाँ, इसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर और हरेक स्तर पर सामूहिक और दृढ़ निश्चयी प्रयास की आवश्यकता है| मेरे विचार से निम्नलिखित उपाय कारगर साबित हो सकते हैं:-

• शीघ्रातिशीघ्र हम अपने बच्चों के स्कूल रिकॉर्ड में जाति के स्थान में ‘ब्राह्मण’ या ‘ब्राह्मण (भूमिहार) या भूमिहार ब्राह्मण लिखना शुरू कर दें|

• सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर सरकार पर प्रभाव डालें कि जनगणना आदि सभी अभिलेखों में हमारी जाति ‘ब्राह्मण’ या ‘ब्राह्मण(भूमिहार)’ या भूमिहार ब्राह्मण ही अंकित हो|

• केन्द्रीय और प्रांतीय सभी अभिलेखों से भूमिहार शब्द हटाकर ब्राह्मण या ब्राह्मण(भूमिहार) ही लिखा और माना जाय|

• आवश्यकता पड़ने पर सर्वदलीय सांसद-विधयाक-जनता समिति बनाकर जातीय एकता का प्रदर्शन करते हुए संविधान संशोधन कर इसे सुनिश्चित कराना चाहिए|

• सामान्यतया भूमिहार ब्राह्मणों का बौद्धिक स्तर काफी ऊँचा है लेकिन समुचित सामाजिक विकास के लिए शिक्षा के स्तर को सुधारना आवश्यक है| मैं अंग्रेजी का अंध समर्थक नहीं हूँ लेकिन मेरा ७० वर्षों का अनुभव बताता है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में “अंग्रेजी दा जवाब नहीं”!!! आज हमारे युवक अंग्रेजी सीखने के डर से हिंदी का गुणगान करते हैं| अंग्रेजी सीखकर अगर हिंदी का गुणगान करते  तो कुछ और बात होती|

• साधनहीन मेधावी बच्चों के शैक्षणिक विकास के लिए ग्राम, प्रखंड, जिला और राज्य स्तर पर उचित एवं समर्पित वित्तीय संगठन की आवश्यकता है| अधिवेशनों में यह प्रस्ताव तो आ जाता है लेकिन उसपर Follow Up  या बाद में प्रगति कार्य नहीं किया जाता है| यह सुनिश्चित होना चाहिए| इसके बिना प्रस्ताव किसी काम का नहीं|

• सदस्यता शुल्क – वित्तीय संगठन की स्थापना सदस्यता शुल्क के आधार पर होनी चाहिए| इसमें हरेक ग्राम से लेकर जिला स्तर के सभी स्वजातीय सदस्य बनने चाहिए जिसके लिए एक न्यूनतम शुल्क निर्धारित हो| अधिकतम की कोई सीमा नहीं हो|

• विडंबना यह है कि समाज में जिसके पास धन है वे कुछ कर नहीं सकते और जो कुछ कर सकते हैं उनके पास धन नहीं है| अगर कुछ करना है तो दोनों के बीच सामंजस्य बैठाने की सख्त जरूरत है|

• अभी तक हमारे समाज में ‘एक म्यान में दो तलवार’ नहीं रहने की संभावना व्याप्त है, सामाजिक सद्भाव और सहिष्णुता के समावेश से इसे बदला जा सकता है|

• स्वजातीय एकता और सुरक्षा को ध्यान में रखकर कुछ संगठन बने तो सही लेकिन अंततः व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना ने इसे तार्किक परिणिति तक पहुंचने से रोक दिया| इस पर पुनर्विचार की जरूरत है|

• एक ऐसी स्थायी कार्यकारिणी समिति बने जिसमे ग्रामीण, शिक्षित और  दवंग आदि समाज के हर स्तर के लोग हों, ताकि लिए गए निर्णयों को सुचारू रूप से कार्यान्वित किया जा सके तथा इनकी उर्जा को भी सकारात्मक दिशा में प्रयोग किया जा सके और इन्हें महसूस हो कि सामाजिक उत्थान में इनकी भी नितांत आवश्यकता है|

• आंतरिक द्वेष, इर्ष्या और कलह ने हमारे विकास के धार को कुंद कर दिया है, इसे आपसी सौहार्द्र और सामंजस्य से ठीक किया जा सकता है|

• हमे भूमिहार ब्राह्मण की एक ऐसी Close Group Web Site बनानी चाहिए जिसपर समाज के सक्षम लोग जो नौकरियां दे सकते हैं अपनी Vacancy का विज्ञापन दें जिससे सिर्फ स्वजातीय ही आवेदन कर सकें| हाँ, योग्यता के सवाल पर कोई ढील नहीं दी जाय ताकि उनकी गुणवत्ता कायम रहे| लोगों में यह धारणा बनी रहे कि ‘अगर भूमिहार ब्राह्मण है तो काबिल ही होगा’| इससे कम से कम योग्य स्वजातीय युवकों को उचित नौकरी मिल सकेगी जो अन्यथा Corporate Sector के विज्ञापन से अनभिज्ञ रह जाते हैं|

उपसंहार

हरेक इतिहासकार ने माना है कि भूमिहार ब्राह्मण अर्थात अयाचक ब्राह्मण एक ऐसी सवर्ण जाति है जो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिये जानी जाती है।  प्रारंभ में कान्यकुब्ज शाखा से निकले लोगों को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया, उसके बाद सारस्वत, महियल, सरयूपारी, मैथिल ,चितपावन, कन्नड़ और केरल के  नम्बूदरी आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इन लोगो से सम्बन्ध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों में मिलते गए| मगध के बाभनो और मिथिलांचल के पश्चिमा तथा प्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणों में ही सम्मिलित होते गए| ‘इस तरह लोग मिलते गए और कारवां बनता गया’|

इस जाति ने सत्ययुग से लेकर कलियुग तक किसी न किसी रूप में अपना स्तित्व और प्रभाव अक्षुण्ण रखा| अभी तक पचासों अखिल भारतीय भूमिहार सम्मलेन या भूमिहार महासभा या अखिल भारतीय त्यागी महासभा स्थापित कर और चितपावन, नम्बूदरी आदि ब्राह्मणों को इसका सभापतित्व देकर अयाचक ब्राह्मणों की एकता का परिचय दिया है| हालांकि महासभाओं में लिए गए निर्णयों/प्रस्तावों पर बाद में अग्रेत्तर करवाई या अमल नहीं किया गया| समृधि और सम्पन्नता के सुनहरे समय में गुमराही के दौर से गुजरने के बाद भी सुबह का भूला शाम को घर आने की क्षमता रखने वाली इस जाति के लिए अभी भी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करने की उम्मीद शेष है| इसमें सर्वाधिक आवश्यक है कठिन परिश्रम और मजबूत इरादे से जीवन के हर क्षेत्र में महारत हासिल करने की| सत्ययुग से ही अध्ययन या शिक्षा हमारी रक्तनलिका में प्रवाहित होती रही है| पूर्वजन्म के संस्कार और प्रारब्ध फलानुसार अल्प प्रयास से ही हम उसे वापिस प्राप्त कर सकते हैं| हमारे पास मानसिक शक्ति, बुद्धि, तर्क-शक्ति, दुर्धर्ष साहस और उछलकर वापस आने का अद्भुत कौशल है| जरूरत है  इसे अपने व्यवहार में लाकर अपनी सफलता में परिवर्तित करने की|

ले.कर्नल विद्या शर्मा (से.नि.)
15फरवरी 2013

और पढ़े – राम-जन्मभूमि संघर्ष और भूमिहार ब्राह्मण

6 COMMENTS

  1. BABHAN (BHUMIHAR BRAHMIN)
    Synonym of Babhan :- Ayachak Brahman, Bhumihar Brahman, Zamindar Brahmin, Magahi Brahman, Paschima Brahmin, Military Brahmin [2]
    Titles :
    1) Landholding titles: Singh/Sinha, Rai, Shahi, Thakur, Kunwar, Chaudhury
    2) Brahmaical titles: Sharma, Pandey, Shukla, Tiwari, Chaubey, Mishra, Dwivedi, Ojha, Upadhyay, Yaji, Karji [2]
    Bhumihar (भूमिहार) or Babhan (बाभन) is a land holding Brahmin community found mainly in Eastern UP, Bihar and Jharkhand. Bhumihar, Bhumik (Bhowmika), Bhoomiya and Bhoome were words used in Indian feudal system to denote landlord before the introduction of Persian word Zamindar by Mughals and other Muslim rulers. Bhumihar literally means possessor of land or land holder (bhoomi + haar ) similar to word Bhumik(Bhowmik). Bhoom word was used in the past feudal system to denote grant of land for secular services. The holder of such bhoom was a Bhumihar[2,c]. Bhumihar word is Hindustani (Indian) equivalent to the Persian word Zamindar or Jagirdar. If a Brahmin had land grant for secular services was called Bhumihar Brahmin . If a Kashtriya had such grant was called Bhumihar Kashtriya [1]. These Bhumihars generally used Rai, Singh, Shahi, Thakur or Chaudhury as their titles to denote their power and authority with land in old days. Bhumihar was not any caste specific word in earlier times just like Zamindar or Jagirdar or Thakur or Chaudhury, It was merely a position of land lordship in the society. It has become a caste specific word purely after it’s popularization by Kashi Naresh and Bhumihar Brahmin Sabha (Caste assembly of Babhans led by Kashi Naresh) for a land owning Babhan community. Babhan was the earlier name of community who owned large chunk of land in Bihar (including Jharkhand ) and Kashi during British period so were called Bhumihar (possessor of land). Rajputs were also land possessor but they were more commonly known as Thakur( an another landowning designation). Bhumihar or Babhan community of today were enumerated as Babhan only in earlier British census Records under military and aristocratic class just like Taga (Tyagi) (census of India 1901, census of India 1891, Census of India 1881 and census of Bengal 1872). There were some myths fabricated by some orthodox people regarding Babhan caste indicating babhan term itself meaning fallen Brahmin just like Raut means fallen Rajput[2,a,b]. This kind of insinuation and false propaganda by some orthodox people led Kashi Naresh and other Babhan landlords to establish a caste Sabha in 1885 which was later called as Bhumihar Brahmin Sabha. Babhan community always disregard the fallen Brahmin myth and consider themselves to be pure Brahmins who has taken up land grant by lord Parsuram after slaying kastriyas, so were called bhumihar or bhuinhar (land taker or land holder ). Big landlords or rajah (especially Kashi Naresh) were the main proponent of Bhumihar word over old babhan term mainly to cast their land ownership state. Bhumihar Brahmin sabha filed numerous representations with E. A. Gait, the director of census operations for Bengal and Bihar, which argued that, for the purposes of the census, the term “Babhan” should not be used to describe them and instead they should be called as Bhumihar or landed Brahmans[3]. In this way after 1911 census survey Babhans were enumerated as Babhan ( Bhumihar Brahmin) in census record[8]. Now a day the same Bhumihar term is used as shortened version of Bhumihar Brahmin. The old Babhan name of community has become just part of history found mainly gazette and non gazette documents at the time of British era. It is also popular in the villages of Magadh (South Bihar) were still Babhan is more frequently used over Bhumihar term in local conversation. Collages and Schools were opened with name Bhumihar Brahmin collage (presently Langat singh collage )and Bhumihar collegiate schools to popularize this Bhumihar term over old Babhan name. Bhumihar was merely a title or status of land holding to some members of Babhan community, since they were proprietor of large estates at the time of British. Now it has become the main name after popularization.
    Babhan word is found in ashokan edicts in reference to Brahmins of Magadh. This led many scholars associate Babhans with Buddhism but there is not any substantial evidence of such association.[4][14][15]
    Risley had given an elaborate account of clans of babhans. He mentioned territorial clans(Mul) as well as brahmaical gotras of babhans. He had also mentioned about preference of territorial clans among babhans over brahmaical gotras in matrimonial prohibition, similar kind of territorial clans and brahmaical gotras, he thought to be present among rajputs[2]. Yogendra nath bhattacharya had pointed out similar kind of territorial division (called dih) and Brahmanical Gotras existed in Maithili brahmins and Sarshwat brahmins too[1].
    The most likely explanation about origin of this community is given in book [Indo-Aryan races, A study of the origin of Indo-Aryan people and institutions by Chanda, Ramaprasad] [4]. This clearly tells Bhumihar Brahmin or Babhan to be Brahmins of ancient Magadh who were speaking a dialect of 3rd century BC(at the time of ashoka) in which Brahmins were known to be Babhans or Bambhans. They have been gradually deprived of priestly function by Sanskrit speaking Brahmins from Midland (central & north India).
    Many Brahmin dynasty flourished in Magadh like Kanva dynasty , Shunga dynasty. This is a clear testimony of Brahmins taking up land duties since ancient times in Magadh. These non priestly Brahmins certainly have been more popularly known by their native name Babhan. Fa Hian, the Chinese traveler has written about brahmins of magadh becoming land masters instead of being knowledge master.
    Many people from other brahmin communities like sarvariya and kanyakubj Brahmin, Muhyal Brahmin (Hussaini Brahmin of muzzafarpur), Kokanastha Brahmin (chitponiya babhan of Nawada) has merged with babhan community and become part of it. Kannojia and sarvaria clan of babhans ( bhuinhar brahmins) are mentioned in a book by Mr sherring [5]
    Entire census records as well as gazetteer of districts and ethnographic study at the time of British have shown Babhan as a synonym to Bhuinhar(a distorted colloquial term of bhumihar) . None of them has mentioned Babhan means Brahmins other than Bhumihar. At the time of british there was a confusion regarding bhuinhar (distorted colloquial of bhumihar) word, since it was synonym for Babhan as well as title for some Tribals(since some of them possess privileged land) in chota Nagpur(See Bhuinhari land in chota nagpur)[6].
    Credible records and documents of british time clearly state that Military and bhuinhar or zamindar Brahmins are babhans or bamhans( which is a phonetic variant of babhan). Babhans have been termed as military Brahmins by Francis Buchanan in his journal of Patna and Gaya during 1811 to 1812. Babhans has been termed as Magahi Brahmin and Paschima Brahmin also by francis buchanan in his purnia report. In a report of sahabad francis buchanan has mentioned about an incident of babhan killing Mr cherry was exempted from capital punishment and was given banishment because babhan term was proved to be a distorted colloquial term of Brahmin[19][20][21]. In early 20th century (1902) Babhan term was discovered on ashokan edicts in reference to Brahmins of Magadh. Bhumihar is a landholding title of babhan caste. Francis buchanan has shown bhumihar or bhumiya terms to be synonyms and meaning landlord or person involved in management of land and used as an alternate term for Persian term zamindar. [19][20][21] Bhuinhar (a distorted colloquial term of Bhumihar) term had been used by some tribals, babhans, few rajputs as well as landlords in assam during British era indicating territorial possession not caste. Bhumihar is evidently a title indicating territorial possession and babhan term has been used to indicate caste. Babhans had been enumerated as military Brahmins in British records similar to tagas of uppar ganga and tagors of Bengal[16].
    [1] Hindu Castes and Sects: An Exposition of the Origin of the Hindu Caste by Jogendra Nath Bhattacharya
    Hindu Castes and Sects: An Exposition of the Origin of the Hindu Caste … : Jogendra Nath Bhattacharya : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/hinducastesands00bhatgoog/page/n132)
    [2,a] The Tribes And Castes Of Bengal: Ethnographic Glossary, Volume 1 By Risley, Herbert Hope, Sir,(The Tribes And Castes Of Bengal: Ethnographic Glossary, Volume 1 : Risley, Herbert Hope, Sir, 1851-1911 : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/TheTribesAndCastesOfBengal/page/n139))
    [2,b] Census Of India 1901 Vol.1 (india ) (ethnographic Appendices) By Risley, Herbert Hope, Sir,( Census Of India 1901 Vol.1 (india ) (ethnographic Appendices) : Risley, H.h. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.55922/page/n199))
    [2,c] A glossary of judicial and revenue terms
    A glossary of judicial and revenue terms, and of useful words occuring in official documents relating to the administration of the government of British India, from the Arabic, Persian, Hindustaání, Sanskrit, Hindí, Bengálí, Uriya, Maráthi, Guzaráthí, Telegu, Karnáta, Tamil, Malayálam, and other languages : Wilson, H. H. (Horace Hayman), 1786-1860 : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/cu31924023050762/page/n115)
    [3]Peasants and Monks in British India by William R. Pinch (Peasants and Monks in British India (https://publishing.cdlib.org/ucpressebooks/view?docId=ft22900465&chunk.id=s1.3.13&toc.id=ch3&toc.depth=1&brand=ucpress&anchor.id=d0e4900#X))
    [4] Indo-Aryan races: a study of the origin of Indo-Aryan people and institutions : Chanda, Ramaprasad (Indo-Aryan races: a study of the origin of Indo-Aryan people and institutions : Chanda, Ramaprasad : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/Indo-aryanRacesAStudyOfTheOriginOfIndo-aryanPeopleAndInstitutions/page/n173))
    [5] Hindu Tribes and Castes by Matthew Atmore Sherring (Hindu Tribes and Castes : Matthew Atmore Sherring : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/hindutribesandc00shergoog/page/n67))
    [6,a] Census of india 1901, Census of India, 1901 : (Census of India, 1901 : India. Census Commissioner : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/cu31924071145571/page/n405))
    [6,b] East India (Census) [microform] : General report of the census of India, 1901
    ( East India (Census) [microform] : General report of the census of India, 1901 : India. Census Commissioner : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/pts_eastindiacensusg_3720-1115/page/n513))
    [7] Refer Census of India from 1872 -1881–1891–1901–1911–1921–1931–1941. These census and ethnographic study by Indian and British historians and officers clearly tells about all the castes in India.
    [8]Census of India 1931 (Census Of India 1931 Vol.7 Bihar And Orissa Pt.1 Report : Lacey, W.g. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive)
    [9]. Statistical Account Of Bengal Vol.12 : Hunter, W.w. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (Statistical Account Of Bengal Vol.12 : Hunter, W.w. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.534069/page/n197))
    [10]. A Statistical Account Of Bengal Vol.xiii : W.w.hunter (A Statistical Account Of Bengal Vol.xiii : W.w.hunter : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.279433/page/n237))
    [11]. Report of a tour in Bihar and Bengal in 1879-80. Vol. 15 : Cunningham, Alexander : (Report of a tour in Bihar and Bengal in 1879-80. Vol. 15 : Cunningham, Alexander : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/pli.kerala.rare.12155/page/n121))
    [12]. A Manual of the Land Revenue Systems and Land Tenures of British India : Baden Henry Baden -Powell (A Manual of the Land Revenue Systems and Land Tenures of British India : Baden Henry Baden -Powell : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/amanuallandreve01powgoog/page/n247))
    [13]. Report On The Census Of Bengal(1872) : Beverley, H. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (Report On The Census Of Bengal(1872) : Beverley, H. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.94529/page/n217))
    [14] Caste And Race In India by G.s. ghurye (Caste And Race In India : G.s.ghurye : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.78637/page/n119))
    [15] Journal of the Asiatic Society of Bengal
    (Journal Of The Asiatic Society Of Bengal 1902 Vol.lxxi Part.i : The Honorary : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.281614/page/n67))
    [16] Ethnography by Baines, Athelstane, Sir
    (Ethnography : Baines, Athelstane, Sir : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.31432/page/n35))
    [17] The Tribes And Castes Of The North-Western Provinces And Oudh, Vol. 2
    (The Tribes And Castes Of The North-Western Provinces And Oudh, Vol. 2 : W. Crooke : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/tribescastesofno02wcro/page/64))
    [18] Warren Hastings And Oudh by Davies, Cuthbert Collin
    (Warren Hastings And Oudh : Davies, Cuthbert Collin : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.49887/page/n135))
    Francis buchanan account
    [19] An Account Of The District Of Shahabad In 1812- 13
    An Account Of The District Of Shahabad In 1812- 13 : Buchanan, Francis : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.100303/page/n203)
    [20] Bihar And Patna In 1811-1812 Vol. 1
    Bihar And Patna In 1811-1812 Vol. 1 : Buchanan, Francis : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.49019/page/n325)
    [21] Account Of The District Of Purnea In 1809-10
    Account Of The District Of Purnea In 1809-10 : Buchanan, Francis : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.56956/page/n217)
    Bengal district gazetter by o malley
    [22]. Bengal District Gazetteers Sahabad : O’malley (Bengal District Gazetteers Sahabad : O’malley L. S. S. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.206888/page/n59))
    [23]. Bengal District Gazetteers Darbhanga : O’malley ( (Bengal District Gazetteers Darbhanga : O’malley L. S.s. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.206867/page/n55))
    [24] Bengal District Gazetteers Muzaffarpur : O’malley
    ( Bengal District Gazetteers Muzaffarpur : O’malley .l. S. S. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.206879/page/n53))
    [25] Bengal District Gazetteers Saran : O’malley
    (Bengal District Gazetteers Saran : O’malley, L.s.s : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.105556/page/n59))
    [26] Bengal District Gazetteers Patna : O’malley
    (Bengal District Gazetteers Patna : The Bengal Seoretariat Book Calcutta : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.279687/page/n57))
    [27] Bengal District Gazetteers Gaya : O’malley
    ( Bengal District Gazetteers Gaya : O’malley, L.s.s : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.69905/page/n111))
    [28] Bengal District Gazetteers Gaya : O’malley ( Bengal District Gazetteers Monghyr : O’malley, L.s.s : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.55891/page/n77))

  2. सुसुप्त पर चुके तेज को जागृत करने का यह अच्छा प्रयास है।किन्तु जाति के नाम पर कुटनीति करनेवाले कचरों से सावधान भी रहना होगा।क्योंकि इस समाज का सबसे बड़ा दुस्मन समाज के ही लोग हैं।जो आगे निकल गया वो पीछे वाले को आगे जेने से रोक रहा है चाहे वो अपना भाई ही क्यों न हो। समाज की यदि यही स्थिति रही तो आनेवाले समय में यह समाज सबसे पीछे दीनहीन खडा दिखेगा। धन्यवाद।
    डा. अरुण कुमार, पुराविद। ,सचिव ..गंडक घाटी सभ्यता शोध संस्थान। हाजीपुर ,वैशाली।

  3. इस प्रकार के प्रेरक, ज्ञानवर्धक, शिक्षा के लिए आभार समर्पित करता हूंl आशा करता हूं हमें इसी प्रकार की चेतना देते रहेंगे l

  4. बाभन (भूमिहार ब्राह्मण)
    बाभन के पर्यायवाची नाम:- अयाचक ब्राह्मण, भूमिहार ब्राह्मण, जमींदार ब्राह्मण, मगही ब्राह्मण, पश्चिमा ब्राह्मण, गृहस्त ब्राह्मण, मिलिट्री ब्राह्मण (Military Brahman)
    उपाधियाँ:-
    1) राजसी उपाधियाँ:- सिंह/सिन्हा, राय, शाही, ठाकुर, कुंवर, चौधरी
    2) ब्राह्मणवादी उपाधियाँ:- शर्मा, पांडेय, शुक्ल, तिवारी, चौबे, मिश्रा, द्विवेदी, ओझा, दुबे, उपाध्याय, याजी, करजी
    भूमिहार या बाभन, (Bhumihar or Babhan) पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार (झारखण्ड मिला कर) में पाई जाने वाली एक ब्राह्मण वर्ग की उपजाति है, जिसका पारंपरिक व्यवसाय भूमि धारण या भूमि आधिपत्य है | भूमिहार और बाभन एक ही जाति के दो प्रचलित नाम है जिसमे भूमिहार भू-स्वामी होने का सूचक है और बाभन जाति का बोधक है | भूमिहार शब्द सबसे पहले 19 वी शताब्दी में सयुंक्त प्रान्त के दस्तावेजों में प्रतीत हुआ| यह शब्द भूमि (आईने अकबरी का) या भौमिक शब्द के पर्याय के रूप में उपयोग हुआ| ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी कोर्ट के शब्दावली के अनुसार भूमिहार शब्द भूमि और हार शब्द से बना है, यह शब्दावली जनवरी 1855 में प्रकाशित हुआ था| भूमि का अर्थ है, अनुवांशिक भूसम्पत्ति जो लगान से मुक्त हो (Bhoomi means a hereditary landed estate free of assessment) और हार का अर्थ है जो लिया हो या रखता हो (haar means who takes it) | प्रारंभिक 19वी शताब्दी में भूमिहार वो लोग थे जो अनुवांशिक भूसम्पत्ति रखने थे |ये शब्द ब्राह्मण के भूमिधारी वर्ग के लिए भी उपयोग होता था जिन्हे बाभन या सैन्य ब्राह्मण (military Brahmin) कहा जाता था और अन्य भूमिधारी लोग भी इस शब्द का अनुवांशिक भूसंपदा दर्शाने के लिए उपयोग करते थे|[1][2][3][4][8][9].
    प्रारंभिक 20 वी शताब्दी तक भूमिहार शब्द जाति विशेष के लिए न हो कर बस भूमिपति होने का सूचक था| ब्राह्मण भूमिधारियों को बाभन या सैन्य ब्राह्मण (military Brahmin) के नाम से जाना था| बाभन ब्रिटिश रिकार्ड्स में सैन्य ब्राह्मण (military Brahmin) के नाम से दर्ज थे[3][14][15]| बाभन या सैन्य ब्राह्मण (military Brahmin)जाति का नाम था और भूमिहार उसके भूस्वामी होने का सूचक था| भूमिहार या भौमिक शब्द जमींदार शब्द का समानार्थी है जिसका अर्थ भूस्वामी या भूमि का मालिक होना मात्र है| राजपुताना गैज़ेटेर में भूमि शब्द का प्रयोग भूमि के अनुदान का बोधक है | योगेंद्र नाथ भट्टाचार्य ने लिखा है की भूमिहार ब्राह्मण वो ब्राह्मण हैं जो भूस्वामी हो गए| [2] भूमिहार लोग प्रायः राजसी उपाधिया लगते थे, जैसे राय, सिंह, शाही, ठाकुर, चौधरी और कुंवर|[3] ये राजसी उपाधिया बस भूस्वामी होने का बोधक था| 19वी और 20वी शताब्दी के प्रारम्भ तक भूमिहार शब्द कोई जाति सूचक शब्द न होकर भूमिपति होने का बोध करता था| १९११ के जनगणना रिपोर्ट से पहले की जनगणना दस्तावेजों में बाभनो के लिए बस बाभन शब्द का ही प्रयोग हुआ है | बाभनो को ब्रिटिश जनगणना में सैन्य और प्रभावी समुदाय के वर्ग (military and dominant caste) में वर्गीकृत किया गया था | तागा (त्यागी) को भी इसी वर्ग में रखा गया था | 19वी शताब्दी में बाभनो के लिए कुछ जलनशील समुदाय द्वारा मिथ्या और कल्पित कथा लिखा गया जिसमे ये दिखाया गया की बाभन का मतलब पतित ब्राह्मण होता है |[3][19][20][21] इसके प्रतिउत्तर में भूस्वामी बाभनो ने (1885 में) एक सभा का निर्माण किया जिसे बाद में भूमिहार ब्राह्मण सभा का नाम दिया गया | बाभन अपने आपको श्रेष्ठ ब्राह्मण मानते है और परशुराम द्वारा अत्याचारी क्षत्रियो को मारने के उपरांत भूमि मिलने के कारन भूमिहार कहते हैं | भूमिहार ब्राह्मण सभा ने 1911 में बंगाल और बिहार के जनगणना कार्यों के निदेशक (E A Gait) को अभ्यावेदन दायर किए, जिसमें तर्क दिया गया कि जनगणना के प्रयोजनों के लिए, “बाभन” शब्द का उपयोग उनका वर्णन करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए और इसके बजाय उन्हें भूमिहार या भूमिधारी ब्राह्मण बुलाया जाना चाहिए।[5][10] इस तरह 1921 के जनगणना रिपोर्ट में बाभन नाम के साथ भूमिहार ब्राह्मण शब्द जुड़ा और इस जाति को जनगणना दस्तबेजो में बाभन(भूमिहार ब्राह्मण) लिखा जाने लगा | आज के समय भूमिहार ब्राह्मण शब्द ही छोटा होकर केवल भूमिहार हो गया है | 1911 के ब्रिटिश जनगणना के उपरांत ही बाभन शब्द में भूमिहार ब्राह्मण शब्द जुडा| उसके पहले के जनगणना (जैसे 1872,1881,1891,1901,1911) में बाभनो को शाही तालिका (इम्पीरियल टेबल) में बस बाभन नाम से ही दर्शाया गया था|[5][10] संयुक्त प्रान्त में भूमिहार शब्द का उपयोग किया गया था और उसे भी बाभन का हिस्सा दिखाया गया था| अब प्राचीन बाभन नाम केवल ब्रिटिश कालीन और उससे पहले के एतिहासिक दस्तबेजो में रह गया है | आज भी मगध के ग्रामीण क्षेत्रो में इस जाति को बाभन के नाम से ही बुलाया जाता है | भूमिहार ब्राह्मण सभा द्वारा प्राचीन बाभन नाम के बदले भूमिहार ब्राह्मण नाम प्रशिद्ध करने के लिए विद्यालय और विश्वविद्यालय का नाम भूमिहार ब्राह्मण रखे गए जैसे लंगट सिंह कॉलेज, भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज के नाम से खोला गया था | भूमिहार केवल बाभन समुदाय का भूस्वामी होने का बोध करने वाला शब्द था जो बाद में मुख्य नाम बन गया |
    बाभन शब्द मौर्या शाषक अशोक के शिलालेखों में 20वी शताब्दी के प्रारम्भ में मिला| 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ में कुछ इतिहासकार यह निष्कर्ष निकलने लग गए
    की बाभन वे ब्राह्मण थे जो बुद्ध की सरण में चले गए और बाद में हिन्दू बन गए| रामप्रसाद चंद्र ने यह दिखाया की अशोका के शिलालेखों में बाभनो के बौद्ध होने के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है ये केवल एक कल्पना है जिसका कोई ठोस साक्ष्य नहीं है | [6][18]
    रिसले (H. H. Risley) एक विख्यात मानव-जाति विज्ञानविद् थे | उनके अनुशार बाभन दो भाग में बाटे हैं एक मूल (territorial clan) और दूसरा गोत्र है | मूल बाभनो के प्राचीन उद्गम स्थान के नाम का बोधक है| गोत्र उस प्राचीन ऋषि के बारे में बताता है जो गोत्रधारी के पूर्वज हैं | गोत्र बाभनो और अन्य ब्राह्मणो के समान हैं | बाभनो में विवाह में प्रतिबन्ध के लिए गोत्र से ज्यादा मूल का ध्यान दिया जाता है| समान गोत्र वाले बाभन यदि भिन्न भिन्न मूल के हैं तो वैवाहिक प्रतिबन्ध नहीं होता | रिसले का मानना था की बाभनो के अलाबा ऐसी रचना राजपूत समुदाय में होता है | योगेंद्र नाथ भट्टाचार्य ने ये बताया की मैथिलि और सारस्वत ब्राह्मणो में भी बाभनो जैसी रचना है|[3][2]
    बाभन नामांकरण की उत्पत्ति के बारे में सबसे विश्वसनीये व्याख्या रामप्रसाद चंद्र की पुस्तक में दी हुई है(Indo-Aryan races, A study of the origin of Indo-Aryan people and institutions by Chanda, Ramaprasad]|[6] बाभन मगध के प्राचीन स्थानीय ब्राह्मण हैं जो तीसरी ईशा पूर्व में ऐसी भाषा बोलते थे (प्राकृत भाषा की मगधन बोली ) जिसमे ब्राह्मणो को बाभन या बाम्भन कहा जाता था| इसलिए ये शब्द अशोक के शिलालेखों में मिलता है | मगध में मध्य और उत्तर पश्चिम भारत से बहुत सारे संस्कृत बोलने बाले ब्राह्मण बाद के काल में आये जो संस्कृत नाम से जाना जाने लगे और स्थानीय पाली बोलने बाले ब्राह्मण कालांतर में बाभन कहे जाने लगे | मगध में बहुत सारे स्थानीय ब्राह्मणो के राजवंश हुए जैसे कण्व और शुंग ये स्थानीय ब्राह्मण बाभन नाम से ही जाने जाते थे और ये भूस्वामी भी थे| स्थानीय ब्राह्मणो का मगध शाषन में मुख्य भूमिका रहा है | ये सभी अयाचक ब्राह्मण वर्ग बाभन थे जो सैन्य और प्रशाषन के कार्यो में भाग लेते थे | फा हियान, चीनी यात्री ने मगध के ब्राह्मणो को ज्ञान गुरु होने के बजाय भू-स्वामी बनने के बारे में लिखा है।[6][18]
    बहुत सारे अन्य ब्राह्मण वर्ग के भूपति लोग बाभन समुदाय में मिलते गए और बाभनो के अंग हो गए | कान्यकुब्ज, सरयूपारीण, चितपावन (चितपोनिया बाभन जो मगध के नवादा में वास करते हैं) मोहयाल (सर गणेश दत्त ) ब्राह्मणो से बहुत सारे भूस्वामी वर्ग बाभनो में मिले और इसके हिस्सा हो गए | स्वयं कशी नरेश सरयूपारीण मूल के बाभन हैं | [7][19]
    संपूर्ण जनगणना के रिकॉर्ड के साथ-साथ जिलों के गजेटियर और अंग्रेजों के समय के मानव-जाति विज्ञान अध्ययन ने बाभन को भुइंहार (भूमिहार का विकृत बोलचाल का शब्द) का पर्याय के रूप में दिखाया है।बाभन शब्द का प्रयोग किसी ने भी उस काल में अन्य ब्राह्मणो के लिए नहीं किया| ब्रिटिश काल में भुइंहार (भूमिहार का विकृत बोलचाल शब्द ) शब्द को लेकर एक उलझन थी , यह शब्द बाभनो के अलावा कुछ पारम्परिक भूस्वामी आदिवासी भी छोटानागपुर में प्रयोग करते थे | भूमिहार शब्द से केवल भूमि का मालिक या भूमि का कारोबारी होने का बोध होता था[4][8][9].
    ब्रिटिश समय के विश्वसनीय दस्तावेजों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बाभन या बाम्हन या बाम्भन, सैन्य और भूमिहार या ज़मींदार ब्राह्मण हैं। फ्रांसिस बुचनान ने बाभनो को मिलिट्री ब्राह्मण, मगही ब्राह्मण, पश्चिमा ब्राह्मण के नाम से सम्बोधित किया था| मगही और पश्चिमा ब्राह्मण बाभनो के मूल के उद्गम स्थान को दर्शाता है जो की मगध और बाभनो के अभी के निवास स्थान के पश्चिम का क्षेत्र है | बाभनो को भू-पति होने के कारन ही भूमिहार कहा गया|
    19वी और प्रारंभिक 20वी सदी में बाभन समुदाय के प्रमुख भूस्वामी व राजा निम्नलिखित हैं:
    1) काशी नरेश, वाराणसी 
    2) तमकुही राज, गोरखपुर
    3) बेतिया राज, चम्पारण
    4) टेकरी राज, गया
    5) हथवा राज, सारण
    6) शिवहर राज,
    7) मधुबन के राजकुमार बाबू, चम्पारण
    8) पाकुर के राजा, संथाल परगना,
    9) आनापुर राज, इलाहाबाद
    10) बराओं राज, इलाहाबाद
    उपरोक्त लेख नीचे संदर्भ में दी गई पुस्तकों का एक अंश है

    References:
    [1] A glossary of judicial and revenue terms
    https://archive.org/details/cu31924023050762/page/n115
    [2] Hindu Castes and Sects: An Exposition of the Origin of the Hindu Caste yogendra nath bhattacharya
    https://archive.org/details/hinducastesands00bhatgoog/page/n132
    [3,a] The Tribes And Castes Of Bengal: Ethnographic Glossary, Volume 1 By Risley, Herbert Hope, Sir, (https://archive.org/details/TheTribesAndCastesOfBengal/page/n139
    [3,b] Census Of India 1901 Vol.1 (india ) (ethnographic Appendices) By Risley, Herbert Hope, Sir, (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.55922/page/n199
    [4] Census of India, 1901 by India. Census Commissioner
    https://archive.org/details/cu31924071145571/page/n233
    [5]Peasants and Monks in British India by William R. Pinch
    Peasants and Monks in British India (https://publishing.cdlib.org/ucpressebooks/view?docId=ft22900465&chunk.id=s1.3.13&toc.id=ch3&toc.depth=1&brand=ucpress&anchor.id=d0e4900#X)
    [6] Indo-Aryan races: a study of the origin of Indo-Aryan people and institutions : Chanda, Ramaprasad
    (https://archive.org/details/Indo-aryanRacesAStudyOfTheOriginOfIndo-aryanPeopleAndInstitutions/page/n173)
    [7] Hindu Tribes and castes
    Hindu Tribes And Castes Vol 1 : Sherring : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.469749/page/n63)
    [8] Census of india 1901, Census of India, 1901 : India. Census Commissioner : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/cu31924071145571/page/n405)
    [9] East India (Census) [microform] : General report of the census of India, 1901
    ( https://archive.org/details/pts_eastindiacensusg_3720-1115/page/n513)
    [10]Census of India 1931 (Census Of India 1931 Vol.7 Bihar And Orissa Pt.1 Report : Lacey, W.g. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive)
    [11]. Statistical Account Of Bengal Vol.12 : Hunter, W.w. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.534069/page/n197)
    [12]. A Statistical Account Of Bengal Vol.xiii : W.w.hunter : (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.279433/page/n237)
    [13]. Report of a tour in Bihar and Bengal in 1879-80. Vol. 15 : (https://archive.org/details/pli.kerala.rare.12155/page/n121)
    [14]. A Manual of the Land Revenue Systems and Land Tenures of British India : Baden Henry Baden -Powell : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/amanuallandreve01powgoog/page/n247)
    [15]. Report On The Census Of Bengal(1872) : Beverley, H. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.94529/page/n217)
    [16]. Bengal District Gazetteers Sahabad : O’malley L. S. S. : Fre (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.206888/page/n59)e Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive
    [17]. Bengal District Gazetteers Darbhanga : O’malley L. S.s. : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive (https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.206867/page/n55)
    [18] Journal of the American Oriental Society by American Oriental Society
    https://archive.org/details/journalvolume04socigoog/page/n90
    [19] Memoirs on the History, Folk-Lore, and Distribution of the Races of the North Western Provinces of India, Vol. 1
    https://archive.org/details/memoirsonhistory01henr/page/24
    [20] Imperial Gazetteer Of India Vol 2
    https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.281524/page/n225
    [21] The Imperial Gazetteer Of India Vol Xxiii Singhbhum
    https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.61214/page/n285 (tekari raj)
    [22] Journal Of The Asiatic Society Of Bengal 1904 Vol Lxxiii Part I
    https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.280545/page/n191 (Hathua raj)
    अनुरोध:- मेरा सभी इंटरनेट पोर्टल्स से यह अनुरोध है की वो भूमिहार ब्राह्मण के साथ साथ बाभन शब्द का भी प्रयोग करे | यह शब्द हमारे समाज से सदियों से जुड़ा है और हमारे समाज के प्राचीनता को दर्शाता है | भूमिहार ब्राह्मण / बाभन लोगो को अपने राजसी उपाधियों के साथ साथ एक समान उपनाम भी अपनाना चाहिए जिनसे उनमे एकता आये | बाभन शब्द शायद एक समान उपनाम की कमी को पूरा करे| बाभनो में बहुत सारे राजसी उपाधियों के कारन काफी भ्रम पैदा होता है इसलिए समान उपनाम हमारे समुदाय में एकता लाएगा | राजसी उपाधियाँ बाभनो के अलावा अन्य समुदाय के लोग भी लगते हैं, ये बस भूस्वामी होने का बोध कराता है |

  5. bhumihar is a landholding designation caste known as babhan or magdhi brahmin in past. Babhans are ancient magdhi brahmins in which few of landholding kanyakubj and saryuparin brahmins has merged and mingled. It is very pitiful that babhans are almost erasing their true babhan or magadhi brahmin identity and emphasizing merely on landholding title bhumihar. Suniti Kumar Chatterji and yogendranath bhattacharya has clearly shown that bhumihar or more precisely bhuinhar is a corrupt form of word bhumdharaka, meaning holder of bhum and bhum is a land equivalent to jagir or inam of mohamdan times. Bhumihar is a landholding title of babhan caste. In the race of sanskritization babhans have neglected their true babhan or magadhi brahmin name and adopted brahmarshi term, which hardly has any historical association with babhans. Babhan is a caste and bhumihar is landholding title of babhans. Babhans are core magdhi brahmins with element of kanyakubj and saryuparin brahmins.

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