12 नवंबर को वाल्मिकीनगर की सभा में सवर्ण विदेशी वाला जो बयान बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने दिया था उस पर नीतीश ने एक लाइन की सफाई नहीं दी. नीतीश ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें अपना काम करने दीजिए. मांझी के इस बयान को लेकर जेडीयू के भूमिहार व दूसरे सवर्ण विधायकों में भारी नाराजगी देखी जा रही है. अनंत सिंह, सुनील पांडे, नीरज कुमार सिंह, संजय झा जैसे नेता मांझी के खिलाफ खुलकर मीडिया में बोलने लगे हैं . लेकिन मांझी कैबिनेट की शोभा बढ़ा रहे एक भी सवर्ण मंत्री ने एक शब्द कुछ नहीं कहा है.
सोशल मीडिया पर ललन सिंह, महाचंद्र सिंह, पीके शाही, नरेंद्र सिंह, रामधनी सिंह जैसे सवर्ण मंत्रियों की चुप्पी के पीछे नीतीश का दिमाग बताया जा रहा है. सोशल मीडिया पर ये लिखा जा रहा है कि नीतीश के कहने पर ही मंत्री मांझी के खिलाफ इस मसले पर बोल नहीं रहे हैं. क्योंकि नीतीश बिहार की राजनीति को एक बार फिर से बैकवार्ड-फॉरवार्ड में बांटना चाहते हैं. अगर इसमें सच्चाई है तो फिर कहा जा सकता है कि नीतीश बिहार की राजनीति को नब्बे के दशक में ले जाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
दरअसल अपनी ओर से नीतीश मजबूती के लिए हर तरह की कोशिश कर रहे हैं. इस रणनीति से एक ओर जहां नीतीश दलित-पिछड़ों की गोलबंदी करना चाह रहे हैं वहीं अपनी छवि की बदौलत सवर्ण वोटरों को भी अपना शुभचिंतक बनाये रखना चाहते हैं. नीतीश ये भी मान कर चल रहे हैं कि सवर्ण समाज में उनकी स्थिति पहले वाली नहीं रह गई है. फॉरवार्ड वोटर चुनाव में एनडीए को वोट करेंगे. हां जिन सीटों पर उनकी पार्टी सवर्ण उम्मीदवारों को उतारेगी वहां सवर्ण वोटर दुविधा में रहेंगे. इसका फायदा उन सीटों पर जेडीयू को हो सकता है. वैसे नीतिश भी जानते हैं कि अ र लालू से वे हाथ नहीं मिलाते तो सवर्ण समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उनके पक्ष में वोट कर सकता था. लेकिन नीतीश को शायद इस राजनीति पर अब यकीन नहीं है. इसलिए सवर्णों को भी उनकी राजनीति पर यकीन नहीं करना चाहिए. खासकर भूमिहारों को उनसे सावधान रहने की जरूरत है.
(इनपुट - एबीपी न्यूज़ + भूमिहार मंत्र)
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